SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी महा! करो परन्तु निवृत्ति रखकर के प्रवृत्ति करो. बाहर की प्रवृत्ति से निवृत्त होकर के थोड़ा-बहुत अवश्य ही आत्म-चिन्तन करें. मैं कौन हूं? मैं क्या हूं? आपसे यदि कोई पछे - "ह आर य" - आप कौन हैं? क्या जवाब देंगे? क्या कहेंगे मेरा यह नाम है. नाम तो उधार है और जन्में तो लाये थे, रजिस्टर्ड था क्या? कछ नहीं, मां-बाप ने दे दिया, आपको स्वीकार करना पडा. जैसा भी नाम दिया हो - मफतलाल नाम दिया हो, चन्दूलाल नाम दिया हो, स्वीकारना पड़ता है. जगत इस नाम से पुकारता है, चलो स्वीकार्य है, कोई डिक्शनरी में से देख कर के तो नाम लाये नहीं. आप कहें महाराज! इस घर में रहता हूं – क्या है -- धर्मशाला है – वह घर आपका हुआ कभी. कई आए, कई गए, आना-जाना तो चालू है. आप क्या कहेंगे? आप कहेंगे कि यह शरीर मेरा है, महाराज. यह शरीर भी तो एक उधार ही है, माता-पिता की देन है. आपका क्या? शरीर भी आपका नहीं, परिवार भी आपका नहीं, मकान भी आपका नहीं, नाम भी आपका नहीं है, तो आपका है क्या? कभी आपने स्वयं का परिचय किया कि मैं कौन हूं? ये अन्दर से बोलने वाला कौन है? नहीं! ____ आत्मा का एक बार सम्पूर्ण परिचय प्राप्त करें. अपनी स्वयं की जानकारी आप प्राप्त करें कि मैं कौन हूं. आत्मा का शत्रु कौन? आपको मालूम नहीं. परमात्मा का कथन है. जैन दृष्टि से आपका शत्रु आपके अन्दर ही है बाहर नहीं. यहां तो जो अपने कर्म को शत्रु मान कर के चले - वही साधु और वही श्रावक माना गया है. आहार-विषयक आयुर्वेद का नियम है – “भोजनान्ते शतपदं गच्छेत्" चरक संहिता आयुर्वेद शास्त्र (मेडिकल साइन्स) दुनिया का प्राचीनतम प्रामाणिक ग्रन्थ है. वह आयुर्वेद का प्रमुख स्रोत है जिस पर मेडिकल साइन्स शोध में लग रहे हैं. सारी दुनिया की आंख खोल देने वाला ग्रन्थ. आपके आरोग्य की चाबी उसमें बतलाई है. उसमें कहा गया है यदि भोजन के बाद श्रम नहीं किया गया तो वह भोजन बीमारियों का घर बन जाता है. रात्रि के समय किया हुआ भोजन आपके अन्दर विकृति पैदा करता है. सूर्य की रोशनी, अल्ट्रावायलेट किरण भोजन के पाचन में सहायक बनती है और मन्दाग्नि को प्रदीप्त करने वाली अल्ट्रावायलेट रेज़ सूर्य की किरणें है जिसके प्रकाश में कोई वायरस नहीं होता. उसकी किरणों में यह ताकत है कि ऐसे जीवाणुओं को पनपने ही नहीं देतीं. उसके कारण कीटाणु छिप जाते हैं परन्तु जैसे ही सूर्य अस्त होता है, वे सारे कीटाणु बाहर निकलते हैं. रात्रि के अन्धकार में वे अपने भोजन की प्रतीक्षा में रहते हैं. वे आंखों से नहीं दिखते, और न ही चर्म-चक्षु ग्राह्य हैं. इतने सूक्ष्म होते हैं. दाल में, साग में, आपके भोजन की 31 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy