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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी मस नाश किया. बहुत बड़ा नुकसान होगा. भावी काल में और यह अनुशासन भंग करने का परिणाम. बहुत बड़ी मर्यादा थी. कल प्रथम दिन के प्रवचन में अनुशासन और मर्यादा का परिचय आपको मिलेगा. बिजयहीर सरि महाराज के समय कैसा सुन्दर अनुशासन था. करोडों की संख्या थी. सम्राट अकबर के समय साढे तीन करोड जैन थे. गए कहा? आपकी मर्यादा भंग करने का परिणाम अनुशासन को तोड़ने का परिणाम बिखर गए. अपने विचार लेकर के और दुकानदारी चला दी. सत्य सामने नज़र आता है. सत्य का सूर्योदय सामने है परन्तु हम आंख बन्द करके अंधे बने हुए हैं. विचारों का आग्रह, विचारों का अन्धकार इतना खतरनाक होता है. सत्य को कोई स्वीकारने के लिए भी तैयार नहीं. सम्राट कुमार पाल के समय जो अनुशासन और व्यवस्था थी, अहिंसा का कितना सुन्दर व्यवस्थित पालन था, एक सामान्य औरत माथे में से जूं निकाल रही थी, उसे अगूठे से दबा कर के मार दिया. कुमार पाल के राज्य में आदेश था कि किसी भी प्रकार के जीव की हत्या नहीं होनी चाहिए. किसी ने शिकायत की. बुलाया. पूछा-कोई साक्षी? यह स्वीकार करना पड़ा. औरत ने कहा मुझसे यह अपराध हो गया. मुझसे यह भूल हो गई. मैं क्षमा चाहती हूं. ऐसे मुफ्त में क्षमा नहीं दी जाती. राज्य के आदेश का उल्लंघन है. सजा तो मिलेगी ही. कैसी सजा? आज भी पाटन के अन्दर के इतिहास कायम है. सुखी संपन्न परिवार की औरत थी. इतना रुपया तुम्हें इसके लिए दण्ड देना होगा. वह जैसे दण्ड का पैसा आया, उससे मन्दिर बनाया गया. यूका विहार. एक जूं जो मारी गई उसके दण्ड स्वरूप यूका विहार भी वह मन्दिर पालन में मौजूद है. एक जूं को मारा उसका परिणाम. यह सजा मिली. बड़ी ताकत थी, परन्तु मर्यादा भी ऐसी थी. इतना महान सम्राट और जब धर्म क्रिया के लिए अवकाश मिलता था हमारे पास जब आराधना का प्रसंग आ जाये तो न जाने कितने काम निकल आते हैं. सारा समय दुकान मकान में ही पूरा करें, आराधना कब करें यह तो सब ऊपर वाले पर है. वह दुकान भी साथ देने वाली नहीं. परिवार भी साथ जाना वाला नहीं. पैसे धन दौलत जो आपने उपार्जन किया सब छोड़कर के जाने का है. लेकर जाने के लिए आपने क्या किया? डाक्टर जब हास्पिटल में आपको डिसचार्ज कर दे. यदि परिवार वालों से कह दे कि होपलेस कन्डीशन है, घर ले जाओ. कोई दवा काम नहीं देगी. आकाश की तरफ अंगुली ऊंची करके यदि बतलाये, परमात्मा का नाम लो. आपकी सवारी जब घर पर आ जाये और परिवार के लोग जब दया दृष्टि से आपको 569 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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