________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी __ आप गृहस्थ हैं, क्या आप के लिए कोई मर्यादा नहीं? गाड़ी लेकर के पूरी दुनिया में आप धूम आयें, सारी दुनिया का चक्कर लगा कर के आयें. श्रावक जीवन के अन्दर भी बहुत बड़ी मर्यादाए हैं, परन्तु सारी मर्यादाओं का उल्लंघन हो रहा है. साधु सन्तों के दर्शन के लिए बस करके वह चातुर्मास में ही आयेंगे. जहां परमात्मा ने निषिद्ध किया, उसी को स्वीकार किया जायेगा. व्यवहार इतना अशुद्ध बन गया. चातुर्मास में ही समय मिलेगा और कभी नहीं, गाड़ी लेकर आये, ट्रेन में आये, कितनी विराधना होती. वह भी साधु पुरुषों के दर्शन के लिए. इसका मतलब कि सब उनके खाते में लिखा जायेगा. व्यापार के लिए आये, स्वयं के लिए आये, वह बात अलग है जब साधु पुरुषों के दर्शन के लिए आये, उसमें फिर विराधना करें, साहूकारी बतलाएं कि मैं बड़ा धार्मिक हूं, और सर्वप्रथम परमात्मा की आज्ञा का उल्लंघन करते हैं. अब यह व्यवहार ऐसा बन गया. कैसे इसे बन्द किया जाये. ये विचारणीय प्रश्न है. इसीलिये तीर्थ यात्रा का भी निषेध किया गया. चातुर्मास में अपने मन्दिर को ही तीर्थ मान लिया जाये, वही तीर्थ है. साधु पुरुष वहां पर हों, उन्हें तीर्थ मान कर उनका ही दर्शन करे. धर्म श्रवण करें, अपनी आराधना करें. बातें अहिंसा की करनी कि जीव दया पालूंगा. बात करने वाले तो बहुत मिलेंगे.लेकिन उनके जीवन में कुछ नहीं मिलेगा. उनको सारा आडम्बर यहीं नजर आयेगा, अपने घर में आडम्बर उनको नज़र नहीं आता. विवाह के अन्दर बड़े बड़े होटलों में पार्टी देते हुए उन्हें पाप नजर नहीं आता. हमारे स्थान में, धर्म स्थान में यदि शुद्ध भाव से भक्ति के रूप में यदि किसी का स्वागत करें, वह उनको पाप नज़र आता है, आडम्बर नज़र आता है. पीलिया हो जाता है तो सारी दुनिया की जाति पीली नजर आती है. ज्ञान का अजीर्ण अगर हो जाये, तब जाकर उनको सारी दुनिया ऐसी नज़र आती है कि मैं जो कुछ हूं, वही सत्य है. संसार में कितना ही भयंकर पाप चलता हो, उसके प्रतिकार के लिए कोई उपाय नहीं. यदि साधना में एक आध धर्म स्थान बन जाये, मन्दिर स्थान या उपाश्रय सो कहेंगे क्या जरूरत है? पैसा गांठ से निकालना पड़ता है, वह नजर में खटकता है. यदि फाईव स्टार होटल बन जाये, सिनेमा बन जाये, तो कहेंगे हमारा शहर कितना विकास कर गया. विनाश उनकी नजर से विकास नज़र आता है. वे यह नहीं सोचते. यह मेरे लिए गैस चैम्बर है. सिनेमा नहीं गैस चैम्बर है जहाँ चरित्र की हत्या होगी. नैतिक दृष्टि से जीवन का अध: पतन करेगा. होटलों में जाकर हमारी भावी सन्तान कमजोर बनेगी. अन्दर के भाव से शून्य बन जायेंगे. वह चीज़ नज़र नहीं आयेगी. बात बोलने वाले लोग बहुत मिल जायेंगे कोई प्रतिकार करने वाला न मिले. मैंने देखा जब कोई धार्मिक वस्तु हो, धार्मिक परम्परा हो, झट अपना अभिप्रायः देने का साहस नहीं करेंगे. हमारा धार्मिक अनुशासन जो हमारी व्यवस्था की प्रणाली थी, आपस में उसका 568 For Private And Personal Use Only