________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी सम्राट कुमार पाल चातुर्मास में नियमित एकासना करने वाले. विचार के दमन के लिए आहार पर नियन्त्रण तो मुख्य उपाय है. यदि आहार पर नियन्त्रण आ गया तो इन्द्रियों पर सहज में नियन्त्रण प्राप्त कर लेंगे. इन्द्रियों का प्रयोग आपके लिए फिर विनाश का कारण नही बनेगा, विकास में सहायक बनेगा. सारी इन्द्रियां भव इन्द्रियां आपकी साधना में सक्रिय बन जायेंगी. चार चार महीने तक एकासन करना उसमें भी पाच-पांच विगई का त्याग. कैसी अपूर्व साधना की आराधना? पांच-2 विगई का मतलब होता है दूध, दही, घी, तेल-तली हुई चीज और मधु. इन छह वस्तओं में से मात्र एक वस्त शरीर के पोषण के लिए ग्रहण करना. दध लिया तो दही नहीं, दही लिया तो दूध नहीं. कैसी अपूर्व उसकी आराधना थी? तब गणधर नागकर्म उपार्जन करके गये. इतना बड़ा सम्राट् परन्तु उसे परमात्मा के दर्शन के लिए अवकाश मिल जाता है. गुरु भक्ति के लिए समय मिल जाता है, धर्म प्रवचन के लिए समय निकाल लेता है. नियमित संभावित समायिक प्रतिक्रमण, जो हमारी क्रियाएं हैं. उनके लिए समय निकाल लेता है. उसी का परिणाम गुजरात के अन्दर आज उसे देव के रूप में लोग मानते हैं. बड़ा दयालु, बड़ा कारुणिक, उसने भी प्रजा के रुदन की कोई ऐसी नीति नहीं दी. हमेशा प्रजा की प्रसन्नता उस व्यक्ति ने प्राप्त की. न उसके राज्य में कभी दुष्काल पडा न उसके राज्य में कोई ऐसी हिंसा हुई. उसके राज्य में, उसकी व्यवस्था में, न किसी प्रकार का दुराचार आया. प्रामाणिक पूर्वक प्रजा की सेवा करके उसने राज्य किया. लोगों के अन्तर हृदय में, दिल में साम्राज्य किया है. वही प्रेम के साम्राज्य का परिणाम. आज तक वहां की प्रजा उसे भूल नहीं पाई. कितना दयालु. चातुर्मास के अन्दर उसका नियम था प्रतिज्ञा थी कि मेरी राजधानी पालण, जो गुजरात की सर्व प्रथम राजधानी है, जहां एक सौ मन्दिर आज भी मौजूद हैं, बहुत बड़ी विशाल नगरियां. चर्तुमास के अन्दर इस नगरी से बाहर नहीं जाता. पालन नगरी का उल्लंघन नहीं करना. इस द्वार से बाहर पांव नहीं रखता, यह उसकी मर्यादा थी. हम दिन प्रतिदिन अपनी मर्यादाओं को भूल रहे हैं, आज हमारी सारी व्यवस्थाएं विकृत हो गईं. भले ही हम त्यागी हों, कोई साधु हों, जीव दया का पालन करने वाले हों, परन्तु यह तो वीतराग प्रभु का कथित सत्य है इसे मिटा नही सकते. जहां चातुर्मास में साधु का विहार करना भी निषिद्ध कर दिया हो, मर्यादा बना दी गई कि चातुर्मास में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में न जाये. जब साधु उघाड़े पांव चलने वाले यत्न पूर्वक चलने वाले, सतत नियम में रहने वाले, उनके लिए भी यह प्रतिबन्ध लगा दिया. चातुर्मास में विहार न करें, अन्यत्र नही जायें, एक ही स्थान पर रहें. 567 For Private And Personal Use Only