________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी पथ्य पहले और दवा बाद में, आहार की शुद्धि पहले, उसके बाद साधना है. आहार उसकी भूमिका है जैसा आहार करेंगे उसका परमाणु आप के विचारों के परमाण को प्रभावित करता है, आप जरा सा नशा लेकर के आये हैं तो वह परमाणु कैसा नचाता है आपको. आपकी बुद्धि भ्रष्ट कर देगा. पागल बना देता है. एक जरा सा वह आ के चैतन्य को जब इतना बेकाबू बना दे तो जरा सा जड़ परमाणु चाहे भांग का नशा हो, चरस का नशा हो या शराब का नशा हो, आखिर तो पर द्रव्य परमाणु हैं. उसमें इतनी ताकत कि आपकी बुद्धि को विचलित कर दे, पागल बना दे तो आहार के परमाणु में ताकत नहीं? वह आपकी बुद्धि पर दिमाग पर असर नहीं डालेगा? दवा भी तो एक परमाणु है, परमाणुओं का समूह है. टेबलेटस हो, गोली हो, इंजेक्शन हो, वह परमाणु जब आपको आरोग्य दे सकता है तो विचार का शुद्ध परमाणु आरोग्य क्यों नही दे पायेगा? यह विचारणीय प्रश्न है. साधना करते हैं परन्तु साधना के अन्दर जो शुद्धि होनी चाहिए, वह हो नहीं पाई. जहां तक बाह्य शुद्धि नही होगी, वहां तक अन्तर शुद्धि कभी मिलने वाली नहीं. भगवान का आदेश है, पहले शुद्ध उसके बाद सिद्ध बन जाओगे, जहां तक शुद्ध नहीं बनें, वहां तक सिद्ध बनने की बात छोड़ दीजिए. हमारा सारा प्रयास अन्तर शुद्धि का होना चाहिए, शुद्ध बनने का होना चाहिए. पहले आप पवित्र बनेंगे. पवित्रता के बाद पात्रता स्वयं मिलेगी. पुण्य की योग्यता आयेगी, पात्रता आयेगी. ग्रहण की योग्यता आयेगी, जिस दिन पात्र बन जायेंगे. उस दिन वह प्राप्ति भी सहज में ही आयेगी. जिस दिन आत्मा साधना के माध्यम से प्राप्ति कर लेगी वह प्राप्ति अपूर्व तृप्ति देगी. तथा पूर्ण विराम प्राप्त कराएगी. यह अनन्त भवों की परम्परा, जन्म मरण का विसर्जन हो जायेगा. वहां तक जाने के लिए हमारा वर्तमान में प्रयास नही है, पर्वो के द्वारा यह प्रेरणा हमें प्राप्त करनी है. इसीलिए पर्यों के अन्दर, हरेक साधन के अन्दर व्रत का महत्व रखा ताकि आत्मा को एक नया संस्कार मिले, तप करने का संस्कार मिले, आहार की वासना से मुक्त होने का संस्कार मिले, उन महान आत्माओं को देखिये. कुमार पाल जैसे महाराज अठारह देशों के मालिक, आहार पर कैसा नियन्त्रण था. इतने विशाल साम्राज्य का मालिक, कोई कमी नहीं. अपूर्व पूर्वोदय, परन्तु साधना में सावधान कितना? साधना के क्षेत्र में सावधानी का ही मूल्य है. रास्ते में आप गाड़ी चला दो 100 मील की स्पीड से गाड़ी दौड़ती हो, कैसी सावधानी रखते हैं? ऐसी सावधानी साधना के क्षेत्र में भी चाहिए. दुर्गति का जन्म स्थान है. दुर्विचार के प्रतिकार के लिए साधना आवश्यक है. एक बार यदि अन्दर से सावधानी हो गयी, तो ये संसार स्वर्ग बन जाए, सारा संसार आपके लिए सहायक बन जाये. विचारों का रूपान्तर हो जाये. IPAT नि 566 For Private And Personal Use Only