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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3-गुरुवाणी Bot Kdol तप के द्वारा. भगवन! यदि तप न हो तो? न हो तो ऊनोदरी के द्वारा तप का संस्कार दिया जाये. किस प्रकार का भोजन हो? सात्विक भोजन बनाने की सारी प्रक्रिया अपने यहां गलत हो गई. हमारी परम्परा में श्राविका यदि भोजनादि सामग्री बनाती है, उस के अन्दर अपूर्व भाव होता है, उसमें भाव ही अलग होता उसके अन्दर परमाणुओं का एक नया प्राण आरोपित होता है, वह भोजन यदि किया जाये तो वह भोजन शुद्ध और सात्विक होगा. पूणिया श्रावक सामायिक के अन्दर बैठा था. मन के अन्दर जरा सा संकल्प विकल्प शुरू हो गया. मन में अस्थिरता आई. वह विचार करता है, आज तक मेरी सामायिक के अन्दर मन में कभी संकल्प विकल्प नही हुआ. चित में चंचलता नही आई. आज क्या कारण है कि सामायिक मे मेरा चित अस्थिर है. बहत आत्म निरीक्षण किया. सामायिक पूर्ण होते ही अपनी श्राविका से पूछा. उसने कहा और तो किसी दोष की संभावना नही है वह पूर्ण प्रामाणिक व्यक्ति था. उसने जीवन मे अनीति अन्याय का एक नया पैसा अपने घर में नही लगाया. श्राविका ने कहा-चूल्हा जलाने के लिए आज पड़ोस से बिना पूछे छाने की आग लेकर के आई सारी रसोई उसी की बनाई. पणिया श्रावक का चिन्तन गहराई को स्पर्श कर गया. जरूर आहार के अन्दर टैक्निकल भूल हुई है, नहीं तो सामायिक के अन्दर मेरा चित्त कभी चंचल नहीं बनता. चंचलता का कारण उसे मिल गया. आप विचार करिए, यदि एक जरा सा अशुद्ध परमाणु भी अपने यहां आ जाये, वह भी अपनी साधना को दूषित कर जाये. फिर यदि अन्याय और अनीति से उपार्जन किया हुआ द्रव्य हो, असात्विक आहार हो, तामसी भोजन हो, राजसी भोजन हो, इस प्रकार का बाहर का निमित्त रोज मिलता रहे. फिर व्यक्ति कहे कि साधना तो रोज करता हूं परन्तु सफलता नही मिलती. सफलता न मिलने के पीछे ये मुख्य कारण हैं. आहार शुद्धि हमने प्राप्त नहीं की. आज तक अशुद्ध आहार का ही सेवन किया, होटलो में गये, बाहर गये. जैसा मिला वैसा खा लिया, हमने कभी उसमें विवेक नही रखा फिर हम ध्यान करें, साधना करें, महाराज मन बड़ा चंचल रहता है. रहेगा ही. साधना में स्वाद नही मिलता, कहांसे मिलेगा? पहले जीभ का स्वाद बन्द करें फिर साधना में स्वाद आयेगा. वह होता नहीं अपनी मार पड़ जाये, फिर डाक्टर दे कि इसके अन्दर आहार पथ्य बरोबर रखना. मैं दवा तो दे देता हूं, टैम्प्रेचर नोर्मल होगा. उसके बाद बड़ी तेज भूख लगेगी. उस वक्त ध्यान रखना कि रोगी कहीं गलत न खा ले और पीछे से वह गलत असर करे तो वह रोगी कहां तक बचेगा. 565 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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