________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: पर्युषण की साधना आचार्य भगवन्त श्री हरभद्र सूरि जी महाराज ने धर्म बिन्दु ग्रन्थ के द्वारा आत्म साधना का एक अपूर्व चिन्तन दिया है. साधना की भूमिका किस प्रकार की होनी चाहिए. किस प्रकार साधना सफल हो. उसकी भूमिका का परिचय दिया. हमेशा यदि आहार की शुद्धि रही तो साधना में सिद्धि अवश्य मिलने वाली है. आहार का विचार के साथ बड़ा निकट का सम्बन्ध है. इसी सम्बन्ध को लेकर के सूत्रों के द्वारा आहार का परिचय दिया कि सम्यक आहार होना चाहिए __ आत्मा के अन्दर अनादि अनन्त काल से आहार की एक संज्ञा रही है. जैन दृष्टि कोण से कहा गया कि जब भी कोई आत्मा शरीर छोड़ कर के जाये और उत्पत्ति स्थान पर सर्वप्रथम वह जीव आहार ग्रहण करता है. आहार प्राप्ति के द्वारा, यह अनादि अनन्त काल का संस्कार है. संस्कार को लेकर के साधना के क्षेत्र में भी आहार के माध्यम से स्वाद का पोषण किया जाये तो वह स्वाद साधना में बाधक बनेगा. व्यक्ति आहार के अन्दर स्वाद ग्रहण करने की लालसा रखता है. साधना में स्वाद बाधक है. आहार बाधक नही है. सारी साधना को दूषित करेगा. अन्दर में विकार उत्पन्न करेगा, विकारों के उपशमन के लिए आहार की पवित्रता आवश्यक है. कल भी इस पर विचार किया था, आज फिर इस पर चिन्तन करें. तथा सात्म्यतः काल-भोजनमिति हरिभद्र सूरि जी महाराज का यह अपूर्व चिन्तन शरीर के आरोग्य के लिए है. यह शरीर साधना में सहायक है. उसके रक्षण के लिए उपाय बतलाया कि हमेशा निश्चित समय पर भोजन करने की आदत डालें. आहार के अन्दर विवेक रखना. कम से कम हम दो चार ग्रास कम खाये, ऊनोदरी तप जिसे कहा गया, कोई व्यक्ति उपवास न कर सके, कोई चिन्ता नही, एकासनादि तप न कर सके तो भी कोई चिन्ता नहीं होनी चाहिए. सूत्र के द्वारा यह चिन्तन दिया कि निश्चित समय पर भोजन करना, इसमे भी दो चार ग्रास कम खाने की प्रवृति रखना ताकि तप का एक संस्कार हमेशा अपनी आत्मा को मिलता रहे. अनादि अनन्त काल से हमारी यात्रा में आहार एक कारण है. आहार की वासना को लेकर जीव संसार में परिभ्रमण करता रहता है. उससे हमेशा सम्बन्ध विच्छेद कर लेना है. आत्मा का स्वभाव अनाहारी है, आहार करना आत्मा का धर्म नहीं, शरीर का स्वभाव है. इन्द्रियों की वासना को लेकर हम आहार करते हैं. उससे सम्बन्ध कैसे विच्छेद किया जाये? 564 For Private And Personal Use Only