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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी निश्चित समय पर भोजन करना औषधी जैसा काम करता है. ऐसा निश्चित समय पर भोजन न करना जैसे आज दस बजे खाये, कल ग्यारह बजे, परसों एक बजे खाये. दुकान में बैठे हैं, ग्राहक हैं, तो चार बजे खा लिया. ऐसे में आरोग्य को नुकसान पहुंचेगा. भोजन कैसे करना यह प्रक्रिया बतलाऊँगा. बहुत सारे आदमियों को भोजन करना आता ही नहीं, भोजन पूरी तरह चबाकर के करना. बत्तीस कवल आहार पुरुषों की मर्यादा बतलाई है. बत्तीस कवल में ही तृप्ति मिलनी चाहिए. आहार के बाद ऊनोदरी होनी चाहिए. वह भी तप का ही एक प्रकार है. बहुत से आदमियों की आदत है कि आहार करने बाद और पानी पी लिया परन्तु आयुर्वेद कहता है. “भोजनान्ते विषम् वारि" वारि का अर्थ होता है जल. भोजन के अन्त में यदि पानी पीएंगे तो वह जहर का काम करेगा. आयुर्वेद मना करता है. उससे गैस ट्रबल होता है, जिससे सारी व्याधि जन्म लेती है. "भोजने मध्यमं अमृतम् भोजन के मध्य में थोड़ा सा पानी पीना चाहिए. अन्तिम में मुख शुद्धि करके एक चूंट पानी पीना चाहिए. वह अमृत की तरह होता है, भोजन को सुपाच्य बनाता है. भोजन के एक दो घन्टा बाद पेट भरके पानी पीना चाहिए. आपकी अन्तर्व्यव्स्था साफ रहेगी. प्रसन्नता रहेगी. आहार बहुत जल्दी सुपाच्य बन जायेगा. ये भोजन के नियम हैं. बहुत से आदमियों की आदत है, भोजन किया और सो गये, आयुर्वेद कहता है: “भोजनान्ते शतपदम् गच्छेत्" भोजन के बाद कम से कम सौ कदम चलना चाहिए. थोड़ा बहुत चले और उसके बाद विश्रान्ति ले. चीजें आपकी हैं और मैं बतला रहा हूं. ऐसी बहुत सी बातें हैं. भोजन करने का तरीका बतलाऊंगा जो बिना पैसे की दवा है. जरा सा प्रयोग करिए और फिर देखिए, आपको कभी दवा नहीं लेनी पड़ेगी. भोजन करने की जो व्यवस्था है. आर्यप्रणाली है. हमारी परम्परा, हमारी संस्कृति है. आप जो भोजन करने डायनिंग टेबल पर बैठते हैं, यह उचित नहीं. यह आपके स्वास्थय के लिए बिल्कुल प्रतिकूल है. हमारे यहां जमीन पर आसन लगाकर मेरूदण्ड सीधा रखकर भोजन करना स्वास्थ्य के लिये अनुकूल माना गया. भोजन करते समय मेरूदण्ड बिल्कुल सीधा हो, बड़ी प्रसन्नता से भोजन करें. कैसे भोजन करें? उसमें रुचि कैसे पैदा हो? इसके लिये कहा है कि परमात्मा के उपकार का स्मरण करके, प्रभुकीर्तन करके, भोजन करे वह धर्म भोजन बनता है. उपकारी आत्मा का स्मरण किया जाता है, देकर के भोजन करे, खिला करके खाये, वह अमत बनता है. इसी आसन में बैठे ताकि वह भोजन को बहुत जल्दी सुपाच्य करता है. डायनिंग टेबल पर बैठकर के खाना, यह पश्चिमी सभ्यता 561 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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