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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी मुनिराज ने कहा-हम तो बाईज्जत निकल गये. मौत की घड़ी देखी ही नहीं, मैंने आग पूछा-बहन तू ताजा खाती है या बासी. क्या सुन्दर जवाब दिया पूर्व की कमाई करके आई ह, बासी खा रही हूं. बासी पुण्य का भोग कर रही हैं. नई कमाई तो कुछ होती नहीं. दान पुन्य तो मेरे हाथ से होता नहीं क्योंकि चाबी तो सास ससुर के पास है. ____ महाराज ने इससे आगे आपने एक प्रश्न किया था कि सास ससुर जिन्दा हैं या मर गये. बह ने सत्य कह दिया कि मन्दिर जाये नहीं, दान पुन्य करें नहीं, खा पीकर जीवन पूरा करें पशु की तरह, आध्यात्मिक भाषा में उन आत्माओं को मरा हुआ माना है. जो आत्मा धर्म क्रिया से शून्य हो, परोपकार से शून्य हो, व्यवहार की सारी प्रवृत्ति से जिनका जीवन शून्य हो, वे जीवित भी मृत समान हैं, पशु तुल्य हैं. मैंने तो जो बात थी कह दी और बहू ने भी बड़ी सच्ची बात बतलाई. यह तो आपको सोंचना है, मन को टटोलकर के देख लें कि मैं जीवित हूं या मरा हुआ हूं यहां तो आहार की लोलुपता के परित्याग का आदेश दिया, पर्युषण जीवन का महामित्र है. आठ दिन जीवन के ऐसे निकले, पहली प्रतिज्ञा आठ दिन में बोलूंगा. इसका प्रयोग करके देखिए. आत्मा को बड़ी शान्ति, बड़ा सन्तोष मिलेगा. आठ दिन तक पाप नहीं करूंगा. भले ही कोई गाली दे जाये, हृदय से उसे धन्यवाद दूंगा. धर्म की कसौटी है आप मौन रखिए. कैसा भी अशुभ निमित्त आ जाये, पाप नहीं करना. महावीर का आदर्श अपने जीवन के अन्दर प्रतिष्ठित करें. आठ दिन मौन रखने का प्रयास करिए. आहार की मर्यादा चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों न आ जाये, आठ दिन रात्रि भोजन नहीं करूंगा, यह आध्यात्मिक सत्ता है. आये दिन झूठ नहीं बोलना, ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा, रात्रि भोजन नहीं करूंगा. एकासन करूंगा. दो टाइम आहार लूंगा परन्तु रात्रि भोजन नहीं. धर्म प्रवचन एकाग्रता से सुनंगा. महावीर के सारे प्रसंग इसमें आयेंगे. उनके पूर्व भव का सारा परिचय सुनने को मिलेगा. धर्म क्रिया द्वारा पाप का पश्चाताप करूंगा. पाप से प्रतिकार की शक्ति पैदा करूंगा. आठ दिन में करके देखिए. ऐसा नहीं कि मुंह में पान दबाया और आकर बैठ गये. मुंह की फैक्टरी चालू रहती है. कम से कम यहां आये तब तक तो हड़ताल रखिए. यह धार्मिक स्थल की मर्यादा है. आठ दिन आपका जीवन प्रेम का मंदिर बन जाये. महावीर का आदर्श आपके जीवन में दिखने लग जाये, तब तो बड़ा सन्तोष होगा. कि मुझे मेरी मजदूरी का पूरा नफा मिल गया. मेरा आठ दिन का श्रम सफल हो गया. आहार की पवित्रता पर चिन्तन चल रहा है. तीसरा सूत्र इसमें बतलाया. "तथा सात्म्यतः कालमोजनमिति" 560 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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