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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी / मुनि राज ने जवाब दिया-बहन मैंने अपना समय नहीं देखा. बिना घड़ी देखे ही आ गया. मुझे मालूम है. मुनि राज ने समझ लिया बहू बहुत जानकार है, समझदार है. मुनिराज ने प्रश्न किया-बहू तेरी कितनी उम्र है? "महाराज मेरी उम्र पांच वर्ष की है." बातें सुनकर सास ससुर विचार में पड़ गये कि अठारह वर्ष की हो गई और स्वयं को पांच वर्ष की कहती है. मुनि राज ने फिर प्रश्न किया.-"बहन तुम ताजा खाती हो या बासी?" "महाराज ताजा तो मेरे भाग्य में लिखा ही नहीं, जब से यहां आई हूं. बासी ही खाती हूं." बहू ने उत्तर दिया. सास को और ज्यादा गुस्सा आया कि दिन में तीन समय गर्म खाती है और घर को बदनाम करती है कि बासी खाती हूं मनि राज ने जाते जाते फिर प्रश्न किया "तम्हारे सास ससुर घर के बडे हैं या नहीं?" बहू ने कहा - "महाराज वे तो कभी के मर चुके हैं खत्म हो गये." सास ससुर वहां गुस्से में लाल पीले हो गये. कैसी डाकिन आई? अभी तो मैं जिन्दा हं और जिन्दे को ही मार रही है. जैसे ही मुनिराज गए, ये गर्मी में आये और सास ने धमकाया. "क्या बोलती है? बोलने में विवेक है? लाज शर्म है?" बहू कुछ नहीं बोली. बड़ी गम्भीर रही. कहा-“इन सारे प्रश्नों को जवाब आपको गुरु महाराज देंगे." ___ सास ससुर दौड़ते हुए मुनिराज के पास गये और मुनि राज से पूछा कि आपकी बातों का मैं रहस्य नहीं समझ पाया. क्या बातें थीं? मुनिराज ने कहा-अरे तुम्हारी बहू तो बड़ी समझदार है. गृहलक्ष्मी है. पूरे घर को उजाला देने वाली है. मेरे आते ही उन्होंने प्रश्न किया महाराज जल्दी आये अर्थात बाल्यावस्था में ही साधु बन गये. उसने कहा-इस छोटी उम्र में संसार देखा ही नहीं. इस छोटी उम्र में सीधे ही आ गये. ___ मैंने वही जवाब दिया जो देना था. मौत की घड़ी देखी ही नहीं. कब मौत आ जाये उससे पहले ही निकलना अच्छा है. आप किसी जगह पर कमेटी में हो, मैम्बर हों, ट्रस्टी हों, आपको ये मालूम पड़ जाये कि यहां बेईमानी से निकालेंगे. मेरे ऊपर आरोप लगेगा. आप अगर होशियार हैं तो क्या करेंगे? पहले से ही रिजाइन देकर बाईज्जत निकल जायेंगे. बेईज्जती से तो बा-इज्जत निकलना अच्छा. संसार में जितने भी आये हैं वो बेईज्जती से तो जायेंगे ही. औधा पांव करके आपको दरवाजे से निकालेंगे. जबरदस्ती निकालेंगे इससे अच्छा है हम पहले ही समझदारी का उपयोग कर घर से बाईज्जत त्यागपत्र देकर के आ गये. 559 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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