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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी था, साथ में पांच सात साथी बैठे थे. जो उनके साथी थे, उनके साथ किसी चर्चा की गहराई में उतर गये. उनकी पत्नी ने रसोई लाकर रख दी. घन्टा निकला, दो घन्टे निकले, तीन निकले, भोजन पड़ा था बातों में लग गये. ज्ञानामृतम भोजनम ज्ञान का भोजन चल रहा है, किसी विषय पर चर्चा चल रही है. उनकी स्त्री अन्दर से आई दुर्वासा ऋषि का दूसरा रूप थी. स्वभाव की क्रूर थी. आते ही बरसना शुरु कर दिया. कहा-तुम को किसने विद्वान बनाया है? महान माना है? तुम तो पहले नम्बर के मूर्ख हो. इतनी भी अक्ल नहीं रसोई तीन घन्टे से पड़ी है और ठन्डी हो गई. तो भी तुमको गप मारने से फुरसत नहीं. दस आदमियों के बीच इतना अपमान कर दिया. सभी व्यक्तियों को फटकार दिया कि क्या समझ कर तुम यहां पर आ गये. कल ये बीमार पड़ेंगे, तुम सेवा करने आओगे? सेवा तो मुझे करनी पडेगी. तीन घन्टा हो गया. रसोई ठन्डी हो गई और तुम लोग इस तरह से पागलपन की बातें करते हो, न बोलने जैसा शब्द बोल गई. टालस्टाय ने साथियों से क्षमा मांगी और कहा-यह मुझे समता का पाठ सिखाने वाली है. मेरी सबसे बड़ी अध्यापिका है. मेरे जीवन में कितने ही प्रसंग आये परन्तु मैं हमेशा बचता रहा. स्वयं को शान्त करता रहा. मेरे निमित्त से तुमको सुनना पड़ा. मुझे माफ करना. वह स्त्री अब भी बक रही थी कि रसोई ठन्डी हो गई. क्या खाओगे? क्या स्वाद मिलेगा? क्या तुम्हारे शरीर को आरोग्य देने वाला यह भोजन है? टालस्टाय ने कुछ नहीं किया, उठकर के अपनी स्त्री के माथे पर थाली रख दी. स्त्री ने कहा यह क्या पागलपन कर रहे हो? पागलपन नहीं इतना सुन्दर हीटर है? अभी सब खाना गर्म हो जायेगा. पूरा वातावरण हंसी में बदल दिया कि सारी गर्मी खाने में आ जायेगी और खाने में स्वाद आ जायेगा. क्रोध से बचने का कितना सरल उपाय निकल आया, परिवार के अन्दर कभी ऐसी अशान्ति का निमित्त आ जाये तो साईड वे निकाल लेना. ___ महाराष्ट्र में एक सन्त तुकाराम हुये. उनके घर में भी घरवाली साक्षात दुर्गा देवी थी परन्तु उसे भी निभा लेते थे. घर में गृह लक्ष्मी है, भले ही उसे दुर्गा देवी कहे, समझदार भी होती हैं. यौवनावस्था में साधु दीक्षा लेकर के गांव में पहुंचे. जब भिक्षा लेने घर पहुंचे तो धर्म लाभ कहकर घर में प्रवेश किया. घर में रहने वाली गृह लक्ष्मी, साधु को देखकर बड़ी प्रसन्न हुयी. आहार देने के बाद बोली-महाराज बहुत जल्दी आ गये.. सास ससुर बैठे आराम कर रहे थे, उठे तक नहीं वे बैठे-बैठे मन में विचार कर रहे है कि-बहू में जरा भी अक्ल नहीं. दिन का एक बज रहा है और कहती है. बहुत जल्दी आ गये. 558 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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