________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी स वह साधु नहीं शैतान है. कुदरत ने ऐसा सुन्दर संयोग दिया. रीछ को अन्दर डाल दिया और रस्सी खोल दी. रीछ पूरे दिन का भूखा बड़े गुस्से में आया हुआ. चेलों ने देखा गुरु महाराज का वाक्य कितना सत्य. भविष्यवाणी की थी रात्रि में देवी आयेगी. साक्षात् देवी आई. वह पेटी ले आये. लाकर रूम में रख दिया. बाहर से झोपड़ी बन्द कर दी. गुरु ने गर्जकर कहा शिष्यों, यदि मेरे आश्रम में झांककर देखा तो सर्वनाश हो जायेगा, जलकर भस्म हो जाओगे. चेलों ने कहा गुरु महाराज आप विश्वास रखिये, आपकी आज्ञा का जरा भी उल्लंघन नहीं होगा. विषयों में लिप्त संन्यासी में ऐसी विकृति आई. जैसे ही ताला खोला, आलिंगन करने गया. अन्धकार था क्या मालूम. उस अन्धकार में काला रीछ क्या नजर आये. आलिंगन करने गया, रीछ को गुस्सा आया हुआ था. बेचारा भूखे प्यासे रीछ का गर्दन पर नख लगा. भूखे रीछ ने स्वामी के शरीर को नोचना शुरू किया. स्वामीजी भय से शिष्यों को बुलाने लगे "दौड़ो मैं मर रहा हूं." शिष्यों ने सोचा जब गुरु की यह हालत है तो हमारी क्या हालत होगी? इससे अच्छा है उसके ही बलिदान से देवी तृप्त हो जायें. शिष्य तमाशा देखते रहे. गुरु के प्राण पखेरू चले गये. कवियों ने बड़ी सुन्दर कल्पना की अपने जीवन का संयम इसमें छिपाकर कहा-अशुद्ध आहार का यही परिणाम. वह विकार उत्पन्न करेगा. विकार विनाश को ले करके आयेगा. कभी ऐसा अशुद्ध आहार नहीं करना. ___ "लौल्य त्यागः" दूसरे सूत्र द्वारा बतलाया, लोलुपता का त्याग, आहार करते समय उसकी वासना नहीं होनी चाहिए. अति मात्रा में आहार करना पशुता का लक्षण माना गया है. अति मात्रा में आहार करने वाला व्यक्ति प्रायः तिर्यक गति में जाता है क्योंकि उससे विषय में उत्तेजना मिलती है. आराधना में विराधना करने वाला बनता है. मन पाप से ग्रसित बनता है, इन दूषणों में बचने के लिये आहार में संयम चाहिये. कई बार शरीर के सहयोग के अभाव में भी मन की वासना बडा नकसान करती है. आहार में लोलुपता नहीं. जैसे मिला जिस प्रकार का मिला, पेट भरना है, भर लिया. महान चिन्तन करने वाले व्यक्ति कभी आहार पर आसक्ति नहीं रखते. टालस्टाय महान साहित्यकार था, साहित्य के अन्दर डूबा रहता, लिखने में पागल बन जाता. कई बार उनकी स्त्री भोजन लाकर रख देती, उन्हें पता ही नहीं चलता. ठन्डा हो जाता, खाना खा लिया. साधु पुरुषों का आहार भी ऐसा है. फिक्र का फाका करे बोले वचन गंभीर. बिना स्वाद भोजन करे ताको नाम फकीर. भोजन में स्वाद नहीं चाहिए, शरीर का रक्षण चाहिए. मोक्ष की आराधना के लिए साधु आहार करते हैं और कोई प्रयोजन नहीं. टालस्टाय टेबल पर भोजन करने के लिए बैठा RA 557 For Private And Personal Use Only