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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी a98 उन्होंने कहा राजन् ! और मुझे कुछ नहीं चाहिए, परोपकार की भावना से तुम्हें सूचन करता हूं. तुम्हारी राजकन्या विषकन्या है, तुम्हारे घर को बरबाद कर देगी. राज्य साफ हो जायेगा, जहां जायेगी उस परिवार का भी नाश कर डालेगी. इसे घर में रखने जैसा नहीं. राजा के कान कच्चे होते हैं. पूछा-भगवन्! इसका कोई उपाय है? तुम्हारे राज महल के पास नदी बहती है. जो सीधी आश्रम तक जाती थी. केलों के वृक्ष का एक ऐसा सुन्दर साधन बनवाओ नाव जैसा. उसपर इस राज कन्या को बैठा दो. आभूषणों से सज्जित करके इसे अन्तिम विदाई दे दो, फिर जैसा इसका भाग्य होगा, वहां पहुंच जायेगी. तुम्हारी तरफ से कन्या को नुकसान नहीं पहुंचेगा. आज रात्रि के समय चन्द्र के प्रकाश में ले जाकर के नदी में बहा देना. कन्या डूबेगी भी नहीं. बहते-बहते जहां इसका भाग्य होगा वहां पहुंच जायेगी. राजा ने कहा - भगवन! जैसा आपका आदेश होगा, वैसा ही होगा. आश्रम पहुंचकर स्वामी जी ने अपने शिष्यों से कहा आज से चन्डिका देवी की साधना करने वाला हूं. रात्रि में चन्डिका देवी अति प्रसन्न होंगी. इस नदी से आयेंगी. एक दीपक जल रहा होगा. तुम जाकर उस पेटी को ले आना. वह बन्द पेटी ला करके मेरे रूम में रख देना फिर मेरे रूम में झांककर मत देखना. रोने की चिल्लाने की आवाज आये, वह तो देवी है. देवी का प्रकोप है, देवी के अनेक प्रकार के रूप होते हैं. हो सकता है, अन्दर रुदन करे, तुम्हें आकर्षित करने के लिए. यदि झांककर देखा तो तुम साफ हो जाओगे. शिष्य ने विचार किया कि आज गुरु की साधना सिद्ध होने वाली है. जो गुरु ने कहा वह जरूर सत्य होगा. बेचारे रात्रि में नदी के किनारे पहरा देते रहे, राजा ने जैसा स्वामी ने कहा था, उसी तरह पेटी बहा दी. बेचारी राज कन्या क्या बोले. बहुत बड़ी पेटी थी. आभूषणों से सजाकर अन्दर डाल दिया. पेटी बहकर के नदी में जा रही थी, बरोबर शिष्यों ने देखा, बात तो सही है परन्तु रास्ते में लकड़ी काटने वाले व्यक्ति जंगल में ही बैठे थे. बहुत रात होने से वहीं रह गये कि सुबह गांव में जाकर लकड़ी बेच देंगे. जंगल में उसी दिन एक बहुत बड़ा रीछ पकड़ा था. डोरी से बांधकर उसे पकड़ा था. किसी मदारी को दे देंगे, कुछ रुपया मिल जायेगा लकड़ी काटने वाले जब रसोई पका करके भोजन कर रहे थे, उन्होंने देखा कि नदी में क्या बहती जा रही है. चान्दनी रात थी, अन्दर दीपक जल रहा था. जंगल में रहने वाले तो बड़े साहसी होते थे छलांग लगाकर उसे निकाल लाये. पेटी खोलकर जब देखा तो राजकन्या ने सारी बात समझाई. मुखिया ने कहा-बेटी जरा भी चिन्ता मत करना. हमारे गांव के एक व्रतधारी युवक है, कोई सन्तान नहीं है. हम तुम्हें वहां सौंप देंगे तुम निश्चिन्त रहो, मन में विचार किया ऐसे दुष्ट दुराचारी संन्यासी को शिक्षा देनी चाहिए. 556 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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