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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: काकाह. कोई याचना है ही नहीं. एक दिन रात्रि के समय राजा आया. एकान्त में आकर ऋषि के चरणों में गिरा और कणाद ऋषि से कहा मुझे आशीर्वाद दीजिए. किस बात का? राज्य के अन्दर आर्थिक परिस्थिति एक समस्या बनी है. मेरे संतान नहीं है, औलाद की चिन्ता है. राज्य के पीछे क्या? मेरे पीछे क्या? कणाद ऋषि ने कहा-चल-चल यहां से उठ. ऐसे भिखारियों को मैं आशीर्वाद नहीं देता. भिखारी मैं या तू. गाड़ी भर करके मेरे लिये लाया. कपड़े ले आया, सोना मोहर ले आया, बर्तन ले आया. मैंने तुझसे कुछ मांगा. तू मेरे पास मांगने आया. ऐसे भिखारियों के लिए आशीर्वाद नहीं होता. यहां तो महान सम्राटों के साथ परिचय किया जाता है, आशीर्वाद दिया जाता है, जो आत्मा की चर्चा ले करके आए. आत्म चिन्तन लेकर के आये, जो परमात्मा बनने की बात करने आये, उनको आशीर्वाद दिया जाता है अपनी साधना में सफल बनें. मेरा आशीर्वाद लुटाने के लिए नहीं है. राजा को अक्ल आ गई. ऋषि जंगल में थे, स्वयं के सम्राट थे, राजा जब शिकार के लिये गया, रास्ता भटक गया. बड़ी गजब की प्यास लगी. मौत दिख रही थी. कणाद ऋषि के आश्रम में गया और कहा भगवन् प्राण जा रहे हैं मुझे पानी दे दें. ऋषि के यहां, एक सदाचारी महान संन्यासी आत्मा. उसे जब उस आत्मा से पानी पीने को मिला तो उसे अमृत जैसा लगा. बड़ा स्वादपूर्ण पानी पीने के बाद उसके मन में ऐसा वैराग्य लगा कि ऐसा जीवन अपने को मिल जाये तो अपना जीवन धन्य हो जाये, ये विचार राजा में पैदा हुए, आश्रम का मात्र पानी पिया और उस परमाणु ने उसके हृदय में ऐसे विचारों को जन्म दिया. राजा ने विवेक पूर्वक निवेदन किया कि भगवन, आपने मुझे प्राण दिया बहुत बड़ा उपकार किया. कभी मेरे राजमहल में पधारें, परिवार को भी आपके प्रवचन का लाभ मिले, बहुत आग्रह किया, प्रेम का आग्रह था, मुनि ने स्वीकार किया. ___ एक दिन सायं घूमते फिरते सन्यासी के मन में आया आज चलूं, राजा ने मुझे बुलाया है, आमन्त्रण दिया है, गये वहां तो षट्रस भोजन. राजमहल में गये. वहां का सारा वातावरण तो आप जानते हैं अशुद्ध. भोजन के लिए बैठा बडी सुन्दर सामग्री भोजन किया. पेट में पायजन गया. विकार उत्पन्न हुआ राजा की राज कन्या सामने बैठी थी. जवान सोलह वर्ष की. उस पर सन्यासी की दृष्टि गई. मन में पाप का प्रवेश हुआ. वर्षों की साधना एक क्षण में साफ. राजा को बड़ा विश्वास, साधु पर विश्वास नहीं तो अविश्वास कहां से आए. ये हमारे निष्काम मित्र, मुझे नया जीवन और प्राण देने वाले मुझे रास्ता बतलाने वाले ऐसी आत्मा द्वार पर प्रवेश हुआ, मेरा जीवन धन्य हो गया. सोना मोहर उन्हें दे दिया जाते समय पूछा भगवन् ! मेरे लायक कोई सेवा कार्य, राजा के घर का अनाज गया न जाने कैसा दूषित तत्व था. मन विकार से भरा था. राजकन्या परदष्टि गई. 555 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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