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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir D -गुरुवाणी: हमारा सौन्दर्य तो हमारा शील है. हमारा सौन्दर्य हमारा सदाचार है. हमारी पवित्रता में जीवन का सौन्दर्य छिपा है, क्या गलत आश्रय लिया जाएगा. इसीलिए आहार की मर्यादा समझते हुए ये सारी बातें आप के शरीर के आरोग्य के लिए कही. यदि आप दो चतुदर्शी उपवास करते हों. गांधी जी जीवन पर्यन्त इस नियम का पालन करते रहे. महीने में दो बार वे हमेशा उपवास करते. उपवास भी ऐसा नहीं कि दिन को अठाई और रात को मिठाई चले या शर्बत, ठण्डाई चलती हो. सिवाय पानी के किसी वस्तु का सेवन नहीं, तब जाकर के पेट को विश्राम मिलता है. आपके शरीर को आपके आरोग्य को वह लाभ देने वाला बनता है. इसीलिए आयुर्वेद में कहा है: लंघनम् पत्थ्यौषधम् अजीर्ण में लंघन सबसे बड़ी दवा है. सारी बीमारियों की रामबाण दवा-उपवास. खाने वाले व्यक्ति ही बीमार पडेंगे. उपवास करने वाला व्यक्ति बीमार नहीं पडेगा. वह मौत के पास जल्दी नहीं जाएगा. तथा अजीर्णे अभोजनमिति जब-जब अजीर्ण अपच हो जाय तो भोजन का त्याग करें, आहार पवित्र चाहिये, सात्विक चाहिये, आहार की विकृति जीवन को कैसे दूषित करती है, इस विषय पर एक सुन्दर प्रसंग आता है: कोई महर्षि बहुत दूर जंगल में अपनी साधना कर रहे थे. वहां के राजा जंगल में निकल गये. शिकार के लिए आये थे और भटक गये. एकान्त में रहने वाले मुनि के आश्रम में पहचे. जगत के बादशाह किसी की परवाह ही नहीं. वैदिक परम्परा में वैशेषिक परम्परा के कर्ता, कणाद ऋषि हए हैं. जंगल में रहते कोई व्यक्ति रोटी दे गया तो निर्वाह कर लिया. किसी की परवाह नहीं. वहां के राजा को मालूम था कि ये चमत्कारी ऋषि हैं. इनके पास कुछ न कुछ उपलब्ध है. जंगल में रहते एक कौपीन पहने हुए, न तो शहर में आते, न किसी से परिचय करते. एकान्त परिचय परमात्मा से. जगत से परिचय करके क्या करना? इस परिचय से क्या मिलेगा? वहां का राजा एकान्त में रहने वाले कणाद ऋषि के दर्शन के लिए गया. नमस्कार करके कहा-भगवन्, मेरे योग्य कोई सेवा हो तो कहिए. आप कहें तो आपका आश्रम सुन्दर बना दूं. आप आदेश दें तो सुन्दर बगीचा लगावा दूं. सन्त ने मौन रखा. राजा समझ गया, कदाचित् ये संकोच वश स्वीकार नहीं करते हों. एक दिन गाड़ी भरके साधन, सामान ले गया. ऋषि के चरणों में निवेदन किया भगवन् / आदेश दें. ये सब सामान आपके लिये लाया हूं. ___ऋषि ने कहा-किसी भिखारी को दे दें, मुझे नहीं चाहिए. मैं सम्राट हूं, मेरे अन्दर 554 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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