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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - ___ लाभालाभ की दृष्टि से बहुत चीजें खाने के लिए, पेट भरने के लिए हैं परन्तु आलू में स्वाद है, यह नहीं मालूम कितने जीवों की हत्या करने के बाद. अपनी रसना इन्द्रिय की वासना को तृप्त करता हूं. आलू, लहसुन, प्याज, गाजर, मूली ये सब अभक्ष्य वस्तु हैं, कुछ ऐसी जो हमारे यहां नहीं ली जाती. सात्विक साधना के बन्धन माने गये. अनन्त जीवों की हिंसा का कारण माना गया. शारीरिक आरोग्य की दृष्टि से घात माना गया. क्योंकि उत्तेजक है. विषय को जागृत करने वाले हैं, इसीलिए साधु-साध्वी के लिए सर्वथा निषेध है. यदि स्वाद पोषण के लिए खाना हो तो बात अलग है परन्तु भगवन्त के आज्ञा में निषेध है. हमारे यहां ही नहीं वैदिक परम्परा, उपनिषदों और पुराणों में इसका निषेध किया गया कि सात्विक आहार चाहिए और उसकी मर्यादा में जो आहार आते हैं वह खुशी से लें. कैसे आहार करना उसका भी विवेक बतलाया है. मांसाहार मानव के लिए अनुकूल आहार नहीं है. शारीरिक रचना भी उस प्रकार की नहीं, मांस को पचने में कम से कम आठ घन्टे लगते हैं. जब जाकरके वह पचता है. हाजमे को बिगाड़ता है, विकृतं बनाता है. मांसाहार करते समय माँस को कितना उबालो तो भी उसमें समुर्छिम जीवों की उत्पत्ति मानी गयी है. उस गर्मी में भी वे नहीं मरते वे उत्पन्न होते हैं उसके अन्दर ही उनका अदृश्य भाव से बार-बार जन्म मरण चलता रहता है. शाकाहार, शुद्ध वनस्पति का आहार, साढ़े तीन घन्टे से चार घन्टे में पचता है. इसीलिए सात्विक आहार करें, मांसाहार का परित्याग कर दें. अण्डा हार्ट अटैक का मुख्य कारण है. शरीर आपका बढ़ जायेगा परन्तु अन्दर से खोखला हो जायेगा. कई बार खून की कमी होती है. खून जब पानी बनता है तो शरीर में सूजन आ जाती है. फूले शरीर को कहें कि क्या मस्त पहलवान है, क्या बहादुर आ रहा है, चलेगा. वह बीमारी से पीड़ित है. इसी प्रकार ये तामसिक भोजन करके कदाचित् स्वयं को पुष्ट मान लें. थोडे समय के लिये यदि आपका शरीर हृष्ट पुष्ट बन गया, परन्त आत्मा तो बीमार हो जाएगी, सारी साधना दुर्बल बन जाएगी. ___बाहर से शरीर को लाभ मिले और आत्मा को नुकसान पहुंचे ऐसा काम हम क्यों करें. हमारे दांतों की रचना देखिए. हमारे पेट की रचना देखिये, यह सारी रचना शुद्ध, सात्विक आहार के लिए है. जो मांसाहारी पशु हैं, उनको आप देखिए, उनकी रचना को देखिए. उस रचना में बहुत बड़ा अन्तर है. जानते हुए यदि हम इसका उपयोग करें तो हमारा दुर्भाग्य है. बाहर के देशों में तो शाकाहार का आम फैशन चल रहा है. विजीटेरियन सोसायटी बन रही है. कछ वर्ष पहले लन्दन में एक साथ चालीस हजार शाकाहारी बने, सामूहिक रूप से. मांसाहार का बहिष्कार कर दिया कि ये इन्सान की खुराक नहीं हैं. हमारा पेट कोई कब्रस्तान नहीं कि रोज लाकर मर्दो को दफनाया करें कितने जीवों की हत्या करनी 552 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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