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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी नहीं, थकावट का नामोनिशान नहीं, बड़ी शक्ति होती है. पूर्ण सात्विक है,शाकाहारी थोड़ा भी मांसाहारी नहीं. आपने देखा बिजली को मापने का माप दण्ड क्या होता है? होर्स पावर, कितना हार्सपावर है. शक्ति तो सात्विकता से ही प्राप्त करना है. तामस की शक्ति आप पैदा कर लें, कितनी उतेजना फैलेगी. जितनी अधिक मात्रा में मांसाहार का प्रयोग हुआ, जितनी अधिक वस्तुओं का गलत इस्तेमाल करने लगे, आप देखिये सारे जगत का वातावरण दूषित और कलुषित बन गया. आप के मानसिक संचार पर गलत प्रभाव पड़ा. उसी का यह परिणाम. चलते रस्ते किसी का खून कर दे. चलते रास्ते ही आपसे दुर्व्यवहार करते हैं, कितना गज़ब का साहस उनके अन्दर आ गया. ये तामसिक शक्तियों का विपरीत परिणाम है. पहले पूर्व काल के अन्दर बहुत अल्प संख्या के अन्दर वह भी गांव से दर छिप करके कदापि लोग इसका सेवन करते होंगे परन्तु खुले रूप में तो कभी नहीं. आज तो सरकार इसका व्यापार करती है. यहां प्रोत्साहन देती है, राज्य का आश्रय जिस को मिल जाये तो फैलने में देर क्या? बहुत गलत हो रहा है, टी०वी० पर, रेडियो के द्वारा, प्रचार के द्वारा, जिनकी आंधी हमारी संस्कृति के लिए घातक बन गई. आजकल एक फैशन बन गया है. युवा जाते हैं. ड्रिन्क नहीं किया, अगर नोनबेज नहीं लिया, उसे मित्र बर्तुल में बड़ी घृणा की दृष्टि से देखेंगे इससे बचने की लालसा में दूषित बनते हैं. यह रोग फिर अपने जीवन को घेर लेता है और सर्वत्र फैलता है. जहां तक सात्विक आहार पेट में नहीं जायेगा सात्विक विचार कभी पैदा नहीं होगा इसलिए गीता के अन्दर तीन प्रकार के भोजन का विभाजन किया. ___ श्री कृष्ण ने कहा-सत्व गुण वाला आहार साधक आत्माओं को लेना चाहिए, निर्देश दिया है तमोगुण का आहार साधना के अन्दर बाधक है और यदि तमोगुण का आहार लिया गया, सारी साधना को खत्म कर देगा. मूर्छित कर देगा. आपकी सारी पवित्रता को नष्ट कर देगा. गीता के अन्दर यह उल्लेख है. मुझे सात्विक गुण वाला आहार चाहिए, रजोगुण वाला आहार नहीं. हमारे यहां इसीलिए अन्डर ग्राउण्ड विजीटेवलस चाहे उसमें प्याज हो लहसुन हो, आलू हो, गाजर हो, मूली हो, ये जितने भी विजीटेवल हैं वे अधिक मात्रा में आपको स्वाद जरूर देंगे. परन्तु मानसिक विचार विकृत करेगें. उतेजनात्मक होंगे. आपकी कामुकता को जाहिर करेंगे. विषय को जागृत करेंगे और दिलो दिमाग पर उत्तेजना लेकर आयेंगे. कितने-कितने जीवों का वह पिण्ड होता है. वहां तक आलू के अन्दर, एक प्याज के अन्दर, अनन्त जीवों का पिन्ड होता है. एक सुई के नोंक में यदि आलू का भाग लेते हैं अनन्त जीवों की विराधना होती है. कम से कम विराधना करके लाभ प्राप्त करने के लिए हम इस जीवन को टिकाने का प्रयत्न करना चाहिये. 551 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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