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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी Kaao मैंने कहा-जो हुआ और मैंने अपनी आंखों से देखा. यह खुराक अब मेरे पेट में नहीं जाने वाली. उस समय से मैंने नियम किया कि कभी होटल की वस्तुओं का उपयोग नहीं करना. हम जरा से स्वाद के लिए अपने विवेक को भूल जाते हैं. होटल चले गये, पैसा दिया और पायजन ले आये. न जाने कब का घी, कब का तेल, कितने कीड़े मकोड़े, उस में तल दिये गये होंगे न जाने कितने दिनों का आटा होगा. उसमें टाट पड़ जाते हैं, वह सबकी सब बीमारियों का कारण बनता है. एक मात्र स्वाद के लिए हम चले जाते हैं, सुविधा की दृष्टि से चले जाते है, कौन बनाये चलो होटल. पर्यषण से पर्व संयोग से आहार का विषय आया. गहस्थ अपने जीवन निर्वाह के लिए किस प्रकार से आहार करे. आहार की मर्यादा इसमें बतलाई है. शुद्ध और सात्विक भोजन होना चाहिए, पेट भरना चाहिए, मन को तृप्ति मिलनी चाहिए. शरीर को आरोग्य मिलना चाहिए. आहार का सर्वथा निषेध नहीं किया गया. परन्तु सात्विक आहार हो. मात्र स्वाद के लिए आहार करेंगे तो शरीर का शोषण होगा. शरीर पर अत्याचार भी नहीं करना. शरीर का निर्वाह करना है, शरीर का रक्षण करना है. इसका सम्यक प्रकार से पोषण करना है. इसे सुरक्षित रखना है. जहां तक चैक नहीं पहुंचे, वहां तक कवर का मूल्य होता है. जहां तक आत्मा मोक्ष में नहीं जाये, वहां तक इस शरीर का भी मूल्य रखा जाता है. हिफाजत रखी जाती है. आप होटल का परित्याग करें, भविष्य के अन्दर इस प्रकार की कोई गलत वस्तु खायें नही. कदाचित भूख लग जाये तो फल लीजिए. कोई नुकसान नहीं, उसमें कोई दोष की संभावना भी नहीं. उसमें कीटाणुओं में रोग की सम्भावना नहीं, निर्दोष वस्तु है. सो चीज ले सकते हैं. जो होटल में खाने का बनाया हो, रात में बनाया हो, न जाने कितने दिनों से बना हो, उन वस्तुओं का त्याग कर दे. अपना आरोग्य आप प्राप्त कर लेंगे. घर पर आहार करिए, अपने मन में कदाचित् कोई रुचि करे, उसे घर पर बनाइये. कम से कम शुद्धता पर्वक बनेगा, सात्विक होगा आहार के बाद आत्मा को तृप्ति मिलेगी, मन को सन्तोष मिलेगा. बाहर खाना बन्द करिये. आज तक हमने दलाल के भरोसे आत्मा राम भाई की पेढ़ी सौंप दी. दलाल को क्या मतलब कि सेठ दिवाली मनाये या दिवाला निकाले. वह तो अपने कमीशन से मतलब रखता है. जीभ को भी अपना कमीशन चाहिए, स्वाद लिया और अन्दर पेट में, पेट में जाने के बाद कोई स्वाद मिलता है कि कचौरी खायी, समोसा खाया, पेट को क्या? जीभ से नीचे उतरने के बाद कोई स्वाद नहीं, उसने तो अपना कमीशन काटा और माल अन्दर सप्लाई. पेट बिगड़े तो बिगड़े, गोदाम में कचरा गया तो गया, जीभ को तो स्वाद मिला. दलाल पर अपना नियन्त्रण चाहिए. मालिक यदि समझदार है तो दलाल से क्या माल लेना? कितना कमीशन देना? सभी का समुचित निर्णय लेगा. इसी प्रकार यदि आत्मा 549 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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