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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी पर हाथ लगाकर चलता रहा, चलता रहा, तिरासी मील को पूरा कर लिया, सात फर्लाग पूरे होने आये, शरीर में खुजली चलनी शुरू.. उसने अपना हाथ दीवार से हटाया और खुजली करने लगा. खुजलाते समय बडा आनन्द आता है, बडा मधुर लगता है, उसके बाद की पीड़ा तो खुजलाने वाला व्यक्ति ही जानता है कि कैसी होती है. वह खुजली करने में इतना मग्न बन गया कि दरवाजा निकल गया. वापिस जब हाथ रखा तो वही दीवार नजर आई. वही चौरासी मील का परकोटा, फिर से वहीं भ्रमण. भगवान ने अपनी देशना में कहा कि हमारे जीवन में भी यही आदत है. चौरासी लाख जीवयोनि से हम परिभ्रमण करते-करते जहां से मुझे बाहर निकलना था उसके पूर्व हमारी अज्ञान दशा विषय कषाय की ऐसी खुजली कि उसे खुजलाने में ही दरवाजा हाथ से निकल जाता है. फिर वही चौरासी मील का परकोटा हमारे लिए तैयार है. कहां तक इस तरह से हम परिभ्रमण करते रहेंगे? कभी अपनी दशा पर विचार करिए. कभी स्वयं का मूल्यांकन स्वयं करिए. मैं कितना मूल्यवान हूं इस जीवन की प्राप्ति में मैंने कितने भवों का बलिदान दिया. कितनी साधनाओं द्वारा मनुष्य जीवन की प्राप्ति हुई. यदि मै प्रमाद करता हूं तो इसका क्या परिणाम आएगा. वर्तमान काल के अन्दर कोई व्यक्ति भावी परिणाम को देख करके नहीं चलता. जितना मैं आज करता हूं, वही मेरे लिए कल बनेगा. आचार्य भगवन्त श्री हरिभद्र सूरि जी महाराज ने बड़ी करुणा से कहा-आहार जीवन व्यवहार का एक परम साधन है, एक परम आधार है. आहार पर चिन्तन चल रहा है. धन कैसे उपार्जन करना, यह आपको बतलाया. कैसे क्या करना यह आपको बतलाया. जीवन के अन्दर सदाचार के रक्षण के लिए विवाह शादी किस प्रकार से करना, वह भी मार्ग दर्शन दिया. मकान कहां बनता है, किस प्रकार का बनाना, वह सारी रूप रेखा बतलाई. जो सत्य हो वह मुझे करना है, वह असत्य है संभव नहीं तो कम से कम असत्य को स्वीकार तो करना है. आगे चलकर के आहार कब करना और किस प्रकार करना उसका निर्देश दिया. "अजीर्णे अभोजनम्" आपका शरीर धर्म क्रिया का परम साधन है. आपका जीवन परोपकार का मंदिर है आपका वर्तमान जीवन मोक्ष को प्राप्त करने का परम साधन है. साधन सुरक्षित रहे, इसी दृष्टि कोण से आहार की मर्यादा बतलाई. बिना साधन के साध्य की प्राप्ति कभी नही होगी. शरीरमाद्यम् खलु धर्म साधनम् धर्म की साधना का यह परम साधन होने से, प्रभु से हम रोज यही प्रार्थना करते हैं मंगलकामना करते हैं. "आरोग्यो हि लाभम्" 545 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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