SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 573
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी: Fon आहार का संयम अनन्त उपकारी परम कृपालु आचार्य श्री हरि भद्र सूरि जी महाराज ने अनेक आत्माओं के कल्याण की मंगल भावना से, इस धर्म सूत्र के द्वारा जीवन के सम्यक व्यवहार का परिचय दिया. किस प्रकार जीवन व्यवहार का सचालन किया जाय, व्यवहार के माध्यम से धर्म को कैसे प्राप्त किया जाए, उपाय और उसका मार्गदर्शन इन सूत्रों द्वारा प्राप्त करना है. ज्ञानियों की दृष्टि में इस जीवन का बहुत बड़ा मूल्यांकन किया है. परन्तु अभी तक किसी व्यक्ति ने स्वेच्छा से स्व का मूल्यांकन नही किया. जीवन कितना मूल्यवान है, भूतकाल की कितनी साधना का वह वर्तमान परिणाम है परन्तु प्राप्ति के बाद ज्ञान, ध्यान साधना के द्वारा जीवन का जो उपयोग करना था, वह हम कर नहीं पाए, सारा ही जीवन हमारा प्रमाद में व्यतीत हुआ. संसार के कार्यों के लिए व्यतीत हआ, परन्तु स्व के आत्म कल्याण की भावना से हम उसका उपयोग पूरी तरह नहीं कर पाए. एक बार हमारी दृष्टि में इसका मूल्य आना चाहिए. न जाने कितने भव भ्रमण करने के बाद मनुष्य जीवन की हमें प्राप्ति हुई. आध्यात्मिक दृष्टि से ज्ञानी पुरुषों ने कहा कोई महान पुण्योदय था, भूतकाल में जिसके कारण इस जीवन की प्राप्ति ह्यी. मनुष्य जीवन परमात्मा ने प्रवेश का मंगल द्वार माना. मानवी जीवन में साधना के द्वारा जीव मिटकर के शिव बनता है. शिव बनने के लिए सारी साधना है, आत्म कल्याण की मंगल भावनाएं और दृष्टि आज हमारे अन्दर से लुप्त होती जा रही हैं. बहुत सुन्दर उपमा द्वारा परमात्मा महावीर ने कहा - एक अन्धा व्यक्ति एक नगर में रहता था, सारा जीवन उसका खा करके व्यतीत हुआ. परन्तु जीवन का पूर्ण विराम उसे नही मिला, बहुत बड़ा नगर था, चौरासी मील के उसके परकोटे थे. प्रतिदिन भिक्षा द्वारा अपना निर्वाह कर लेता, गांव के लोग बडे दयालु थे, किसी के द्वार पर जाता, कोई मना नहीं करता. वर्षों गुजर गये, एक दिन शरीर में ऐसी व्याधि उत्पन्न हुई, सारे शरीर में चर्म रोगजिसकी खुजली को लेकर वह बड़ा बेचैन हुआ. चारो तरफ घूमता रहा. मन में बड़ी बेचैनी उत्पन्न हुई कि कहां तक मैं इस प्रकार घूमूंगा? कहां तक इस प्रकार भ्रमण करूंगा? वह थक गया. मन में एक दिन विचार आया कि मैं यहां से बाहर चला जाऊं. बाहर जाने के लिए उसने प्रयत्न किया. किसी दयालु व्यक्ति ने कहा चौरासी मील का इस नगर का परकोटा है, निकलना है तो एक बड़ा सीधा सा उपाय बतलाता हूं, दीवार पर हाथ रखकर के चलो, जहां पर द्वार आएगा वह तुम्हे सहज में पता चल जायेगा. वहां से तुम नगर से बाहर जा सकते हो. उस व्यक्ति को निकलने का रास्ता बतला दिया. वह दीवार on 544 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy