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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी काम इस प्रकार से यदि आहार विहार का संयम रखेंगे तो स्वास्थ्य सुरक्षित रहेगा. जीवन सुरक्षित रहेगा. जिसको लेकर के हम धर्म क्रिया कर सकेंगे. आरोग्य विषय पोषण के लिए नहीं, धर्म साधना का एक साधन है. ये समझ कर के आरोग्य की सुरक्षा रखनी है. __ "अरूग्ग बोहिलाभम्" आरोग्य बोधिबीज (सम्यग् दर्शन) का लाभ हो. "तथा सात्म्यतः कालभोजनमिति" इस सूत्र के द्वारा बतलाया गया कि उचित और योग्य समय पर भोजन करना. किस प्रकार का भोजन करना. ___ "तथा लौल्यत्याग इति" लोलुपता से रहित होकर के भोजन करना. मेरा भोजन भजन बने. मेरा भोजन धर्म बने, कितने व्यक्तियों के पेट की आग को बुझा करके उसके बाद अमृत भोजन करूं, धर्म भोजन करूं. मेरा भोजन भी मेरी आत्मा को तृप्त करने वाला हो. भोजन की सारी व्यवस्था का परिचय दिया. भोजन की पवित्रता होगी तो व्यवहार में निश्चित पवित्रता आएगी. ___भोजन यदि सात्विक होगा तो साधना के अनुकुल सात्विक विचार निश्चय आएंगे. भोजन का परमाणु हमारे हृदय पर असर करता है. हमारे विचार परमाणुओं को प्रभावित करता है. कल बतलाऊंगा भोजन का क्या प्रभाव पड़ता है. महान त्याग करने वाला साधु बालक की हत्या करने वाला पापी बने. यह भोजन का परिणाम कैसा? विकृत आहार पेट में गया. महान चारित्रवान साधु ब्रहमचारी पुरुष राजा के घर गया और अशुद्ध भोजन के परिणाम स्वरूप राजा की स्त्री पर राजा की पुत्री पर वासना उत्पन्न हुई और साधु जीवन सर्वनाश कर गया. __ आहार की अशुद्धि बहुत भयंकर अशुद्धि है. जैन आचार के अनुसार आहार शुद्ध सात्विक और पवित्र होना चाहिए. साधना के अनुकूल होना चाहिए कल इस विषय पर विचार करेंगे. आज इतना ही रहने दें. “सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्" Rai 543 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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