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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 3Dगुरुवाणी को नुकसान कर जाए. सारी व्यवस्था इन सूत्रों द्वारा इसीलिए बतलाई गई. मन पर कवर चढ़ाने के लिए आचार का दर्शन, विचार का परिचय दिया. और कोई प्रयोजन नहीं था. उनको क्या मतलब आप की दुकानदारी कैसे चली, आप क्या खाए, क्या पिए, उन आचार्यों को क्या प्रयोजन था? मात्र आपके लिए दया भाव कि दुर्गति में न जाए. अपने जीवन को बरबाद न कर लें, उनको इस प्रकार का विचार दर्शन दिया गया. इस करुण भावना से उन्होंने इस ग्रन्थों की रचना की. इन सूत्रों के द्वारा जीवन का आदर्श उन्होंने बताया. कहां रहना? कैसे रहना? यहां तो आप समझ गये. उस महान पुरुष ने लिखा कैसे खाना? कहां खाना? सर्व प्रथम इसका परिचय यहां से प्रारम्भ किया. "तथा-अजीर्णे अभोजनमिति" भोजन कैसे करें यह भी बतलाया. "अजीर्णे अभोजनम् आयुर्वेद का सबसे बड़ा सिद्धान्त है. पेट में यदि अजीर्ण है और उस समय यदि भोजन करें तो जहर बनेगा. कई बीमारयों को जन्म देने वाला बनेगा, "लंघनम् पथ्यौषधम्" वहां उपवास ही उसका श्रेष्ठ उपचार है, वही सबसे बड़ी दवा है. सारी व्याधि चली जाएगी. अजीर्णावस्था में कभी भोजन नहीं करना क्योंकि आरोग्यावस्था को नुकसान पहुंचाता है. इस सबके पीछे इसका लक्ष्य है. चित्त की समाधि है. धर्म साधना का यह साधन है, यदि साधन सुरक्षित नहीं तो कभी साध्य नहीं मिलेगा. दर्जी कितना ही होशियार हो परन्तु यदि सुई और डोरा उसके पास न हो तो वह क्या कपड़ा सिलेगा? साधन के अभाव में वह अपने विचारों को कैसे आकार देगा. डाक्टर कितना ही होशियार हो, परन्तु यदि दवा नहीं तो आपका क्या उपचार करेगा? कलाकार कितना ही जानकार हो बहुत बड़ा महान चित्रकार हो, परन्तु कलर और ब्रश उसके पास नहीं तो आकार क्या देगा? चित्र का निर्माण कैसे करेगा? साधन पहले चाहिए. "शरीरमाद्यंखलु धर्मसाधनम्" धर्म की साधना के लिए शरीर परम साधन है, इस साधन को सुरक्षित रखा जाता है, अगर धर्म क्रिया करनी है, हाथ सुरक्षित है, दान का कार्य होगा. परमात्मा की भक्ति होगी. पांव सुरक्षित है, आप धर्म यात्रा पर जायेंगे. आंख सुरक्षित है तो परमात्मा का दर्शन कर पाएंगे. सन्त पुरुषों का दर्शन कर सकेंगे. कान सुरक्षित है, धर्म कथा का श्रवण कर पायेंगे. जीभ सुरक्षित है, प्रभु का नाम ले सकेंगे, ये सारे साधन धर्म क्रिया के लिए है धर्म की प्राप्ति के लिए हैं. हमारी धर्म साधना के लिए शरीर आवश्यक माना जायेगा. हमारे जीवन में यह आवश्यक तत्व है. इनका ध्यान रखकर ही चलना है जिस दिन धर्म क्रिया सुन्दर हो जाये, दिन को धन्यवाद देना. धर्म के साधन सुरक्षित रखने के लिए आरोग्य के नियम इसमें बतलाए. 542 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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