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-गुरुवाणी
जहां समस्या पैदा होती है, समाधान वहीं मिलेगा. जैसे ही उसको ढीला कर दिया । गया, सारी समस्याएं स्वतः मिट गयीं. समस्या मन से पैदा होती है और यदि मन को समझा दिया जाए तो सारी समस्या का समाधान हो जाएगा.
दरअसल, हम पैसे में समस्या का समाधान खोजते हैं. परिवार में खोजते हैं, पत्र में, पुत्री में, बाहर के वैभव में और धन-सम्पति में समाधान खोजते हैं. परिणामतः समस्या अन्दर बनी रहती है और हमारी मृग-मरीचिका की तलाश जारी रहती है. __ मृत्यु का भय सबसे भयंकर होता है. इससे आतंकित अच्छे-अच्छे व्यक्तियों का एक ही परिणाम होता हैं. सम्राट-सिकन्दर अन्ततः निराश हो गया क्योंकि वह समझ गया था कि उसके पग-पग पर अग्रसर होने के साथ मृत्यु निमन्त्रण दे रही थी.
जब किसी को युवावस्था का मद हो, पास में धन की प्रचुरता हो, मानसिक स्थिति भी दर्द से आप्लावित हो और साथ में सत्ता का मद भी हो तो आप समझ लें कि उसकी अन्तिम घड़ियों का यह पूर्वाभास हैं. अस्तु कवि का निम्न उद्घोष स्मरणीय है
"उछल लो, कूद लो, जब तक है जोर नलियों में"
“याद रखना इस तन की, उड़ेगी, खाक गलियों में" सारी गर्मी चली जाएगी. बड़ी शान-शौकत से निकलते हैं. बड़े शान से चलते हैं. बहुत ऐशो-आराम से हम रहते हैं. माथा ऊंचा करके हम निकलते हैं. हमें कुछ नहीं मालूम, हमने अपने भावी काल को नहीं देखा. वर्तमान के अन्दर अपनी मृत्यु को झांककर के नहीं देखा. उसे मालूम नहीं कि कल जला दिया जाऊंगा - श्मशान के अन्दर यह खोपड़ी कितने पांव की ठोकर खाएगी. बड़े शान से मैं ऊंचा मस्तक लेकर के जा रहा हूं और न जाने मृत्यु के बाद कितना अपमान इस देह को सहन करना पड़ेगा.
एक बार एक समझदार फकीर मरे हुए मुर्दे की राख लेकर सूंघ रहा था. किसी व्यक्ति ने पूछा कि आप यह क्या कर रहे हैं. उसने कहा कि यह किसी बहत बड़े रईस लाला की राख है. वह दस बार सेन्ट (इत्र) आदि लगाते थे और जहाँ से निकलते थे. वह परिवेश सुवासित हो जाता था. बड़े सुन्दर और हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति थे. मरणोपरान्त राख में उनकी सुगन्ध का अवशेष देख रहा हूँ.
कैसा समाजवाद है? चाहे कैसा भी गरीब हो अगर जला दिया जाए तो उस राख में कोई दुर्गन्ध नहीं मिलेगा. चाहे कैसा भी अमीर हो, उसकी राख में कोई सुगन्ध नहीं मिलेगा. श्मशान का समाजवाद बड़ा विचित्र है.
कितना बड़ा था सिकन्दर, और वह भी मरते समय निराश हो गया. सारी दुनिया को लूटने वाला, उस पर विजय प्राप्त करने वाला, वह मौत से हार कर के जा रहा था सब कुछ लुटा कर के जाना पड़ रहा था, कुछ भी उसके पास नहीं बचा.
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