________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - -गुरुवाणी - पा आनन्दधन जी महाराज जी का जीवन ही अलग प्रकार का था. पूर्ण निस्पृही कभी उपाश्रयों में नहीं रहते. वह कभी ऐसे बन्धन में नहीं रहते. आज स्थिति बदल गई है. अगर उपाश्रय में साधु रहेंगे तो आर्डर चलेगा. महाराज ऐसे करिए. वैसे करिए. आनन्दघन जी महाराज कोई सांसारिक व्यक्ति नही हैं. महान तपस्वी और उनके पास वह ताकत लब्ध स्वर्ण सिद्धि उनके पास. जैसा उनका इतिहास कहता है. तो आनन्दघन जी महाराज उपाश्रय में कहीं प्रवचन देने गये और नगर के सेठ आये. व्याख्यान शुरू हो गया. आनन्दघन जी महाराज मेड़ता में रहे. गांव के सेठ आए. और कहा-महाराज आपने प्रवचन शुरू कर दिया. हमारे यहां प्रथा है. मेरे आए बिना प्रवचन शुरू नही होता. यह उपाश्रय मैने बनवाया है. __बात सुनते ही आनन्दघन जी का स्वाभिमान जागृत हुआ. उस दिन से उपाश्रय में कभी पांव नहीं रखा. जंगल में ही रहे. एकान्त स्थान में रहे. कभी इस बन्धन में नहीं आये. साधु अपने विचारों से स्वतन्त्र होते हैं. उनकी अपनी गर्जना थी. देवता रात्रि में आनन्दघन जी के पैर दबाने आते थे, वही चरित्र और परमात्मा की भक्ति से ओत प्रोत जीवन था. किसी गांव में आनन्दघन जी महाराज का आना हुआ. रास्ते में जा रहे थे. नाचने गाने वाले लोग होते हैं. बहुत बड़ा कुन्डाला था. आनन्दघन जी महाराज जंगल से आए और आकर जब झांका. देखा वहां बहुत सी तिलक लगाई मूर्ति भी थी. तिलक लगाने से कोई मोक्ष का सर्टिफिकेट नहीं मिलता. कुतुब मीनार जितना लम्बा लगाए तो भी कोई कल्याण होना वाला नहीं. अन्तर में शुद्धि चाहिए, यह तो भगवान की आज्ञा है. भगवन्! तेरी आज्ञा शिरोधार्य करता हूं, उसके अनुसार मुझे चलना है. मुझे तिलक को कलंकित नहीं करना. ___ मेरे निमित्त से परमात्मा के शासन को बदनाम नहीं करना है. मेरा आचार व्यवहार ऐसा हो. एक जमाना था. गांव में महाजन की दुकान होती थी कोई भाव नहीं पूछता था. महाजन अपना भावताव करने में अपमान समझते थे. उनकी जबान की कीमत होती थी. साइन नही, साइन तो चोरों का होता है. साहूकारों का नहीं. हमें हमारे पूर्वजों पर गर्व था. गांव के व्यक्ति न्याय लेने आते, कोई नहीं जाता. महाजन की दुकान पर चलो, वह जो न्याय देगा, गांव के लोग इतना आदर करते थे. आनन्दघन जी महाराज उस कुन्डाले में चले गए. जाकर के एक दो मिनट देखने लग गए. हर गांव में नादर होते हैं कानाफूसी करने वाले. शाम का समय पांव दबाने के निमित्त कुछ लोग आए. एक दो मुंह लगे थे. आनन्दघन जी के पांव दबाने लग गए. और कहा-महाराज, गांव में एक बहुत चर्चा का विषय बना है. आनन्द घन जी जानते ही थे परन्तु उत्सुकता बतलाई. 539 For Private And Personal Use Only