SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 566
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी नुकसान होता है. हमारी आदत के ये लक्षण हैं. उपकार तो सभी करते हैं. कोई ऐसा साधु नहीं जो जाति पर उपकार न करे. आपके व्यक्तिगत जीवन में किसी ने उपकार किया हो, किसी से आपने धर्म प्राप्त किया हो, उसे सौ बार मानिए, परन्तु जब उसे सामाजिक राष्ट्रीय रूप दिया जाये, या उसे बहुत ज्यादा व्यवहारिक रूप में लाया जाए तो कितना अनर्थ पैदा होता है. कितने उप-संप्रदायों का निर्माण होगा. आनन्दघन जी महाराज इसके कट्टर विरोधी थे. यह दृष्टि रोग है. इसे जहर की उपमा दी गई. यदि आपने मेरा राग रखा तो वह जहर बनेगा और यदि साधु पुरुषों से अनुराग रखा तो अमृत बनेगा. कभी व्यक्तिगत अनुराग में मत जाइये, परमात्मा का अनुराग चाहिये. यहां तो साधुता की सुगन्ध चाहिए. साधु कोई भी आ जाए और यदि इसमें कुछ नजर आये तो गुणों का अनुराग चाहिए. जो अन्तरगणों में वृद्धि करे. वरना इसका अनर्थ होगा, यदि आप मेरा अनुराग रखते हैं मात्र मेरा नाम कि मेरे तो वश नहीं लेकिन ज्ञानी पुरुषों ने कहा है वह तिन्नाणं तारयाणं के लक्षण नहीं. न वह गुरु तार पाएंगे न आप तर पाएंगे. ये लक्षण तो डुबाणं डुबियाणं लक्षण हैं, मैं भी डूबू और फिर साथ में आपको भी डुबाऊं. व्यक्तिगत अनुराग निश्चित आत्मा का पतन करता है. कभी ऐसा अनुराग नही चाहिए. हमारे गुरु महाराज कहा करते और अंतिम चातुर्मास में तो मुझे साफ कह गए, मेरे गुणों का अनुराग, मेरा नहीं. हम सब साधुओं को यही बात बारबार कहा करते थे. ___ प. गुरू महाराज जी की समाधि कोबा (गुजरात) में बनी परन्तु मूर्ति परमगुरु गौतम स्वामी की स्थापित हुयी ताकि जगत के चारों ही संप्रदाय, जगत की हर आत्मा वहां आकर वन्दन करे. कोई संप्रदाय नहीं, कोई व्यक्ति वाद नहीं गुरु महाराज की मैंने समाधि बनाई मेरा फर्ज था. मेरा कर्तव्य था, मेरे ऊपर इतना उपकार, परन्तु मूर्ति गौतम स्वामी की, गुरुदेव की नहीं. मेरे जैसे तो कई मरेंगे, किस-किस की मूर्ति रखा करोगे? पूरा मन्दिर तो हमारी मूर्तियों से ही भर जायेगा. यहां गुरू तो मर के चौबीस हजार भी पैदा होंगे. भगवान की मूर्ति एक तरफ और हमारी मूर्ति एक तरफ आप ले आओ. यह अनर्थ है, इसीलिए मैने अपने गुरु का कहीं फोटो नहीं रखा. कहीं भी उसकी मूर्ति नही रखी. कभी उनकी जयन्ती नही मनाई. उन्होंने कहा-यदि तुमको मुझ पर व्यक्तिगत अनुराग है, मेरी मृत्यु तिथि पर अयंबिल करना, तप करना, आराधना करना, परन्तु उसे सामाजिक रूप मत देना. कैसा आदर्श था, ये आदर्श कथन में नहीं, उनके आचरण में था. रत्नप्रभ सूरि महाराज ने आप पर इतना उपकार किया फिर भी कहीं एक भी मूर्ति है किसी उपाश्रय में धर्म स्थान में? जिसने आपको पैदा किया, औसवाल जाति का निर्माण किया, साढ़े चार सौ साधुओं का बलिदान दिया, जिस व्यक्ति ने अनशन करके प्राण दे लायन OU S 537 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy