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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी ज्ञान का प्रकाश मिला है, अब क्या मै शरीर धारण करूंगा. मैंने इसी लिए राग और द्वेष को खतम कर दिया, मौत को आज्ञा देने वाले जो साधन थे, उनका विनाश कर दिया. अब हम अमर भये न मरेंगे अब मैं कभी मरने वाला नहीं. उस महान पुरुष की दृष्टि ही अलग थी. हमारे जीवन के अन्दर भी धर्म साधना करते समय ऐसी गर्जना आनी चाहिए कि मौत आने में भी विचार करे; धर्मात्मा पुरुष को कभी चिन्ता होती नहीं. बाहर रास्ते में चलते हुए चोर पुलिस से मुह छिपाएंगे, साहूकार कभी पुलिस से नही डरते. निर्दोष व्यक्ति हो, सदाचारी आत्मा हो, वह कभी मौत से नही डरती. ___ कर्म राजा की पुलिस मौत का वारन्ट लेकर आती है, यहां तो कदाचित् बच जाए, नाम बदल दे प्लास्टिक सर्जरी करा ले, दुकान का, मकान का, पाटिया बदल ले, परन्त कर्म की पुलिस - मौत ऐसी है, बाहर से बदलने का कोई मूल्य नहीं रहता, बरोबर एड्रेस पर आती है. कोई विलम्ब नही करती. कोई सिफारिस नही चलती. कोई वकालत को नहीं आता. जरा समझ करके चलें, हमेशा, सतत अपनी मृत्यु को सामने देख करके चलें. आनन्दघन जी महाराज इतने निस्पृह थे, गांव का एक बहुत समझदार राजा उनका परम भक्त था. नमन करके चरणों में गिरा और कहा - "भगवन्! कभी मेरे जैसे दास को याद करते हैं?" आनन्दघन जी ने क्या जवाब दिया? फक्कड महाराज थे. परवाह किसी की नहीं, जंगलों में रहते, एकान्त निवास करते. सतत परमात्मा के चिन्तन में और गुणगान में रहते. राजा ने पूछा - “भगवन्! कभी आप मुझे याद करते हैं?" आनन्दघन जी ने कहा - “तुम क्या कहते हो? कभी भगवान को भूलूं तब तुम याद आओ. यह आनन्द घन तो भगवान की भक्ति में मस्त रहने वाला है. मैं जगत को याद करने वाला नहीं. तुझे याद करने वाला? मेरा यह जीवन क्या तुझे याद करने के लिए है? भक्तों को याद करने के लिए है. ऐसा हो तो साधु जीवन का ही सर्वनाश हो जाए, और आज यही धन्धा चल रहा है." आप भी ऐसे अनुरागी मिल गए महाराज. महाराज-ठीक है. साधुता का अनुराग होना चाहिए. साधुओं के गुणों का अनुराग जरूर होना चाहिए. परन्तु जब हम व्यक्तिवाद में आ जाते हैं और व्यक्ति को जब महत्व देने लगते हैं, जिसकी महावीर के शासन में कोई व्यवस्था ही नहीं, यहां किसी व्यक्ति के नाम का भी उल्लेख नहीं और जब किसी व्यक्ति के अनुराग में आ जाएं और कहें यही मेरे गरु. दुसरे किस काम के? जरा विचार करिए. उसका परिणाम क्या आता है? संप्रदाय के अन्दर से अलग-2 कितने ही संप्रदाय निकल जाते हैं, अलग संप्रदाय बन जाते हैं, समाज का बहुत बड़ा 536 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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