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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी वह वासना को लेकर के तुम्हारी दुकान में घुसा. तूने जबरदस्ती अत्याचार पूर्वक धक्का देकर के अपने बाप को उतार दिया. पूर्व भव में वह तेरा बाप था." "मैं अभी दौड़ करके जाता हूं, सारी संपति देकर के भी मै पिता को बचाने का प्रयास करता हूं."-सेठ मफतलाल ने कहा. मुनिराज ने कहा-“अब बहुत देर हो चुकी है." जैसे ही बाप का नाम सुना, दौडता हआ गया, थोडा लेट कर के गया, कसाई के घर गया और कहा भाई तु मांगे, उतनी संपति देने को तैयार हं. त मांगे उतना सोना मोहर देने को तैयार हूं. बकरे को तू मुक्त करदे और मुझे दे दे. "सेठ साहब! समय बहुत हो गया, अब तो हन्डी में मांस पक रहा है." ज्ञानी पुरुषों की दृष्टि में संसार की विचित्रता को देखकर उस आत्मा में ऐसा वैराग्य उत्पन्न हुआ. घर का परित्याग कर दिया, परिवार का परित्याग कर दिया. मन एकदम स्थिर बन गया, सामने मौत नजर आ रही थी. सात दिन के अन्दर तो उसने सात भव का निर्माण कर लिया, सदगति का निर्माण कर लिया. वह तो सात दिन के बाद गया, कदाचित् हम सतर वर्ष बाद, अस्सी वर्ष बाद जाएं, हमारे पास कोई तैयारी है.? ऐसा आत्म विश्वास है? मरकर के सद्गति में ही जाऊंगा. मैंने दुर्गति का द्वार बन्द कर दिया. मेरे आचार में अब दुराचार का भी प्रवेश नहीं हो सकता. मैं आचार से बिल्कुल पूर्ण सक्रिय रहूंगा. परमात्मा को अपने हृदय मन्दिर में स्थान दिया है परमात्मा को प्रसन्न करने का मेरा हर प्रयास होगा. मै कैसे दुगर्ति में जाऊं. ___आनन्द घन जी महाराज बड़ी गर्जना पूर्वक कहते थे. ऐसी हिम्मत हमारे अन्दर आनी चाहिए. आनन्दघन ऋषि परमात्मा की भक्ति करते समय अन्तर हृदय से उदगार निकले कि मेरा संसार कभी का मर गया, जो परमात्मा को पा जाए, वीतराग परमात्मा की उपासना करने लगें जाए. वहां क्या संसार रहेगा? वहां क्या मौत रहेगी? मौत भी भाग जाएगी. __ आनन्दघन जी महाराज की हृदय से वह गर्जना निकली. परमात्मा की भक्ति के स्तुति के रूप में. ___ "अब हम अमर भये न मरेंगे" ये आनन्द घन के शब्द हैं. महान योगी पुरुष के. यह आनन्द घन अब मरने वाला नहीं, मौत को चैलेन्ज दे दिया, उनकी मौत तो कभी की मर गई. जिस दिन से प्रभु का साथ लिया, उसी दिन से मौत तो मर गई. परमात्मा का साथ लेने वाला व्यक्ति अपनी मौत को मार देता है. या कारण मिथ्या दियो तज, क्यों कर देह धरेंगे आनन्द घनजी ने उसका कारण भी स्पष्ट कर दिया, इसीलिए तो मैंने मिथ्यात्व का, असत्य का परित्याग कर दिया, अन्धकार का नाश कर दिया, अब परमात्मा वीतराग के Sal 535 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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