________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir =गुरुवाणी "क्या?" "क्या क्या? इतना बड़ा कारोबार चलता है, टेलीफोन आते है आर्डर पर आर्डर आता है, महाराज जी." "शतं विहाय-भोक्तव्यं" "जब सौ पचास जगह का आर्डर आता है, तब हम भोजन करते हैं." "सहस्रं स्नानमाचरेत्" "हजारों का जब नफा दिखता है तब स्नान करने जाते हैं." "लक्षं विहाय दातव्यम्" “लाख की कमाई हो जाये तब थोडा बहुत दान देकर पाप को धोने का प्रयास करते हैं." ___"कोटिं त्यक्त्वा हरि भजेत्" "जब करोड़ आएगा तब हरि का नाम लूंगा. अभी तो कोई जरूरत नही पड़ी." ऐसे बुद्धि के विकार को क्या कहेंगे. व्यक्ति की आदत है, उसे अपनी मौत दिखती ही नहीं, पैसा दिखता है. संसार दिखता है परिवार दिखता है वह व्यक्ति अपनी नजर से मौत को नहीं देखता कि कल मरूंगा. कहीं किसी व्यक्ति को यदि अंतिम संस्कार के लिए ले जाते हैं, मरे हुए इन्सान के अन्दर अपनी मौत को देखिये. अपनी कल्पना करके अपने भविष्य को देखिए. इसी प्रकार मैं ले जाया जाऊंगा. पाप से बचने का यही एक उपाय है, साधु महाराज ने उनको कहा कि “सेठ साहब आपने जो पैसा पाप से उपार्जित किया, उसका भोग यह पुत्र कुकर्म में करेगा. दुराचार में करेगा. सारी सम्पत्ति साफ हो जाएगी. शेष में शून्य रहेगा. इस मकान का एक भी ईंट यहा पर रहने वाला नहीं. मैंने ज्ञान द्वारा आपके उस भविष्य को देखा." सेठ को पसीना-पसीना हो गया. अपनी मौत नजर आई कि सात दिन में मैं मरने वाला हूं. ये सारी सम्पति का सर्वनाश होने वाला है. उसके साथ वह विचार में पड़ गया कि मैं क्या करूं? मेरा पर भव कैसा होगा. मर करके मैं कैसी स्थिति में जाऊंगा? कौन सी गति में जाऊंगा. वह सारी बात भूल गया और यह याद आ गया. उसने कहा -- “महाराज शाम के समय आप जंगल जा रहे थे, उस समय भी आप हंसे, उसके पीछे प्रयोजन क्या था?" "तू समझ नही पाया, जिसे तू धक्का देकर के नीचे उतार रहा था, पूर्वभव में वे तेरे पिता थे. ये वासना को लेकर तीर्यच भव में आए. बकरा बने, अतिवासना का परिणाम. इसी रास्ते से जब कसाई ले जा रहा था, तब ममत्व के कारण पर्वजन्म की स्मति हयी जिसे 'जातिस्मरण ज्ञान' कहा जाता है. उस ज्ञान के प्रभाव से बकरे ने विचार किया, यह बालक, मेरा बच्चा मुझे बचा लेगा, यह मेरी दुकान, मेरी संपत्ति सब नजर आयी न 534 For Private And Personal Use Only