________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - ठीक है. उन्होंने और कुछ नही लिखा, पण्डित थे, बड़े सज्जन पुरुष थे, मफतलाल के जीवन व्यवहार को देखकर के उनके अन्दर में दया आई, एक श्लोक लिखकर दे दिया कि इसका पठन करना, चिन्तन करना. इसके अनुसार जीवन जीने का प्रयास करना और कुछ नही लिखा एक श्लोक था. शतं विहाय भोक्तव्यं, सहस्रं स्नानमाचरेत्। लक्षं विहाय दातव्यं, कोटिं त्यक्त्वा हरि भजेत् // कितनी सुन्दर बात इसमें लिख दी. मफत लाल सेठ पर दया करके सन्त पुरुष ने इतने सुन्दर जीवन निर्माण के साधन बतलाकर कहा. "शतम् विहाय भोक्तव्यं" सौ काम छोड़ करके निश्चित समय पर भोजन कर लेना चाहिए. जिससे आरोग्य सुरक्षित हो, यह नीति का वाक्य है. "सहस्रं स्नानमाचरेत" हजार काम छोड़ करके स्नान संध्या कर लेनी चाहिए. "लक्षं विहाय दातव्यम्" लाख काम छोडकर, यदि घर पर कोई याचना को आया हो, उसको सम्मान पूर्वक उचित दान देना चाहिए. "कोटिं त्यक्त्वा हरि भजेत्" एक करोड़ काम छोड़ करके परमात्मा का स्मरण, हरि का कीर्तन करना चाहिए. यह नीति का वाक्य है. सेठ तुम से कुछ भी न हो तो इतना तो करना. चरण में नमस्कार करके मफतलाल चला गया, दो चार महीने भी निकल गये. वापिस सन्त पुरुष का आगमन हुआ. सन्त ने आते ही पूछा-क्यों मफतलाल, जो श्लोक लिख करके दिया था, तुमने उस पर कुछ अमल किया? महाराज. जो अर्थ आपने लिया था वह तो सतयुग का अर्थ था, कलियुग के अनुसार उसका अर्थ अलग प्रकार का होता हैं सन्त ने कहा मफतलाल तुम सेठ से पण्डित कब बन गए? तुम्हारे में ये अक्ल कहां से आ गई कि तुम मुझे पढाने आए. महाराज जी. आप सज्जन हैं आपको मालूम नहीं दुनिया बदल गई, अपने बतलाया वह तो सतयुग का अर्थ था. "शतं विहाय भोक्तव्यम्" “सौ काम छोड़कर भोजन करना, हजार काम छोड़कर स्नान करना, लाख काम छोड़कर याचक को दान देना, करोड़ काम छोड़ कर भी प्रभु का नाम लेना. मैंने इस पर बड़ा सुन्दर चिन्तन किया. आज के अनुसार उसका अर्थ कर लिया. महाराज जी, आप भी ध्यान में रखिए जब जरूरत पडे, मेरे अर्थ का ही उपयोग करना." A RAM 533 For Private And Personal Use Only