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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3-गुरुवाणी "भगवन्! कोई उपाय?" "यहां कोई उपाय काम नहीं करता. मौत के सामने कोई उपाय नहीं, कोई दवा नहीं, मौत का कभी प्रतिकार नहीं हो सकता. सावधान हो जाओ. मन से साधु बन जाओ, मन से संसार का विसर्जन कर दो. पाप का पश्चाताप करके मन का शुद्धि करण कर लो. भविष्य में इस मृत्यु के आक्रमण से बच जाओगे." “भगवन! दूसरी बार आप मेरे द्वार पर आए और हंसे उसका क्या कारण?" "जिस बालक पर तुम्हारा इतना ममत्व है, बड़ा सुन्दर अनुराग है, पुत्र के प्रति होना भी चाहिए, पिता का वात्सल्य होता है परन्तु अनुराग वासना नहीं बननी चाहिए, आत्मा से आत्मा तक ही अनुराग होना चाहिए. तुम्हारे उस अनुराग में मुझे वासना की दुर्गन्ध आई. उस बालक के प्रति तुम्हारा इस प्रकार का जो ममत्व था, वह बड़ा विकृत प्रकार का ममत्व था. तुम नहीं जानते जिस लक्ष्मी का तमने इतना पाप करके उपार्जन किया है, उस लक्ष्मी को, वही बालक दुर्व्यसन के अन्दर, जुआ के अन्दर उड़ा कर साफ कर देगा और दिवालिया बना जायेगा. तुम्हारी सारी लक्ष्मी का घोर से घोर दुरुपयोग इस बालक के द्वारा होगा. जो सम्पत्ति तुमने पाप से उपार्जित की, यदि वह सारी सम्पत्ति पाप मार्ग में जाए. उसका अनुमोदन कैसे किया जाये? कितना झूठ बोल करके, कितनी चोरी करके, कितनी आत्माओं को दुखी करके, कितनी माया प्रपंच करके, ये लक्ष्मी उपार्जित करते हैं, इस पाप द्वारा उपार्जित लक्ष्मी का यदि हम गर्व करें, अभिमान करें और फिर पाप मार्ग में ही उसका यदि हम व्यय करें, अपने शरीर के लिए, शरीर की वासना की पूर्ति के लिए, या इन्द्रियों के विकारों को तृप्त करने के लिए, कितना बड़ा अपराध होगा? ___ उसका तो सुन्दर से सुन्दर कार्य में उपयोग होना चाहिए. परोपकार के अन्दर उस लक्ष्मी का उपयोग होना चाहिए, परन्तु वह बात ध्यान में आती नही है. सूत्रकार एक बार नहीं, अनेक बार कह करके गये परन्तु हमने कभी उस तरफ ध्यान दिया ही नहीं. सेठ मफतलाल कथा में आते, रोज कथावार्ता चलती. बेचारे साधु सन्त आए थे. दयालु थे. उन्होंने मफतलाल से कहा - तुम कुछ नीति का पालन करते हो. कथा में तो ठीक है, गांव के लोग आते हैं, तुम भी आ जाते हो. एक लोक मर्यादा ऐसी है कि छोटे मोटे गांव में बड़े लोग ध्यान रखते हैं कि आए या नहीं आए, व्यवहार से भी कई बार आना पडता है. कोई हर्ज नहीं. ___ मैं एक छोटी बात कहता है, ध्यान में लेना, एक श्लोक लिखकर देता हूं. रोज इसका पाठ करना, रोज इस पर चिन्तन करना, तुम्हारे जीवन की सारी समस्याओं का निवारण इस श्लोक के द्वारा हो जाएगा. जो मैं लिख करके देता है, इसका रोज स्वाध्याय करना, चिन्तन करना और इसके अनुसार जीवन जीने का प्रयास करना, 532 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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