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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: हम इतने रुपये लेंगे. सेठ ने कहा - क्या मै रुपया इसीलिए कमाता हूं? हजारों बकरे रोज कटते है. मैं कहां-कहां, किस-किस को बचाऊं. मैने बचाने का ठेका ले रखा है? तुम्हारा बकरा है, तुम उतारो. बड़ी मजबूरी थी. बकरे की आंख में आंसू आ रहे थे. में-में चिल्ला रहा था. धक्का देकर के दुकान से उतार दिया. कसाई उसे लेकर के चलते बने. यह सारी घटना देखकर साधु महाराज फिर हंस गए. उनकी हंसी में कुछ रहस्य नजर आया. सेठ विचार में पड़ गया. आज दिन में तीन बार ऐसी घटना हुई. सुबह मैं कह रहा था, इस मकान को ऐसे रंगो, सात पीढ़ी तक मकान का रंग न जाए. ये मुनिराज हंसे. इनके हंसने के पीछे रहस्य क्या? हंसी तो मेरे कार्य पर मुझे आनी चाहिए, साधु तो संसार से उदासीन होते हैं, उनके हंसने का प्रयोजन क्या है? घर के अन्दर में अपने बालक को भोजन करवा रहा था वहां भी उस घटना देखकर ये साधु हंसे. इसका कारण क्या? यहां पर भी मैं देख रहा हूं, यह वर्तमान घटना. यह तो कसाइयों का धन्धा है. रोज हजारों बकरे लाते हैं और काटते हैं, मैंने कहा - किस को बचाऊ, मैने धक्का देकर जब उसे निकाला, साधु मुनिराज देखकर वापिस हंसे. उनके हंसने के पीछे रहस्य क्या है? __जैसे ही वे जंगल से लौट कर अपने स्थान पर गए. सेठ भी पहुंचा. उनसे निवेदन किया भगवन्! मै एक बहुत बड़ी जिज्ञासा लेकर आया हूं. मेरे मन में आज बहुत विचार आ रहा है. मैं आपके हंसने के प्रयोजन को समझ नही पा रहा हूं. आज दिन में तीन बार ऐसी घटना घटित हई. सबह मकान रंगते समय भी आप हंसे, घर मे आहार के लिए आये, उस समय भी आप हंसे. शाम को जंगल जाते समय भी हंसे. कृपया मुझे समझाइये रहस्य क्या है? साधु मुनिराज ने इतना ही कहा. "कर्मणां विचित्रा गतिः" कर्म की गति बड़ी विचित्र है. इसके रहस्य को जान पाना तो ज्ञानियों का विषय है. मैंने तो एक विशिष्ट ज्ञान के द्वारा तेरे जीवन के भावी काल को जब देखा तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. एक ज्ञान के द्वारा मेरे अन्दर स्फुरणा हुई, ऐसे विचार आये. जिस समय मैं जा रहा था और तुम मकान रंगने के लिए आदेश दे रहे थे, कि सात पीढी तक यह रंग कायम रहना चाहिए. मैंने ज्ञान में जब देखा तो सिर्फ तेरा सात दिन का आयुष्य है. यह बात सोच कर मुझे हंसी आई, व्यक्ति अपने सात दिन को नहीं देख पाता और सात पीढ़ी का वह विचार करता है, सोचता है. यह कैसा दुर्भाग्य है? व्यक्ति भविष्य की बड़ी सुन्दर कल्पना करता है, परन्तु भावीकाल में घटने वाली भयंकर घटना अपनी मौत को भी वह नहीं देखता. वह दृष्टि उसके पास नहीं है. जैसे ही मृत्यु का नाम सुना एक दम स्थिर बन गया. चरणों में गिर गया. 531 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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