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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी में जो है वो मिलेगा. मेरा कर्तव्य है पुरुषार्थ करना. मन से क्यों कमजोर बनूं. मन तो हमेशा सुदृढ रहना चाहिए. धर्म साधना के अन्दर पूर्ण सक्रिय रहना चाहिए. जब-जब पाप का आक्रमण हो जाए, विचारों के अन्दर पाप का प्रवेश हो जाए और उसका आक्रमण शुरू हो जाये, सदविचारों को नष्ट करने का प्रयास करें तो अपनी मौत का चिन्तन करें. जीवन का हर कदम मृत्यु की तरफ बढ़ रहा है. यह सोच करके चलिए, पाप मूर्छित हो जाएगा. वासना मर जायेगी. एक बहुत बड़ा श्रीमन्त अपना शानदार मकान बना रहा था, कोई ज्ञानी पुरुष उसी रास्ते से जा रहे थे, जाते हुए सात मंजिला मकान था और सेठ नीचे से कहता है जरा अच्छी तरह से रंग करना. मेरी सात पीढ़ी तक यह रंग कायम रहना चाहिए, ताकि तब मै तुझको मजदूरी के साथ इनाम भी दूंगा. जो साधु महाराज उस रास्ते से जा रहे थे, उसकी बात सुन कर हंसे. सेठ मन में विचार करता है, मकान मेरा, मै स्वयं रंगाता हूं. मैं अपनी बात करता हूं. उसकी प्रसन्नता का आनन्द लेता हूं. महाराज को क्यों हंसी आई? इनके हंसने के पीछे प्रयोजन क्या? मकान मेरा, मै रंगवाता हूं अपने पैसे से रंगवाता हूं. मेरी प्रसन्नता है. प्रसन्नता पर मेरा अधिकार है. ये साधु महाराज मेरी बात सुनकर क्यों हंसे. इसका प्रयोजन क्या? महाराज तो चले गए, संयोग से भिक्षा के लिए उसी घर पर उनका आना हुआ. कर्म के संयोग कैसे विचित्र होते हैं, उसी घर में उनका आना हुआ. एक बालक था, कोई सन्तान नही. अपनी सम्पत्ति थी, उनके पास. श्रीमन्त व्यक्ति की पुण्याई में कोई दुष्काल नही था. बालक सेठ की गोदी में बैठकर साधु भाव से भोजन कर रहा था. उसी समय साधु महाराज का आहार के लिए वहां आना हुआ. जैसे ही अन्दर आए, धर्म लाभ, मंगल आशीर्वाद देकर अन्दर गये. बालक बहुत छोटा था गोदी का बालक था. पेशाब हो गया, थाली में छींटे गिरे पिता का ममत्व इस थाली को दूर किए बिना इसी थाली में भोजन कर रहा था, यह देख कर साधु महाराज फिर हंसे. सेठ मन में विचार करता है, बालक मेरा है, इसने पेशाब किया और छींटे थाली में गिरे. मुझे कोई आपत्ति नहीं, बालक पर मेरा अपूर्व प्रेम है, मेरा बालक, मैं उसे भोजन खिला रहा हूं, इस सबके पीछे इनके हंसने का रहस्य क्या है? कुछ बोले नहीं. __ मुनिराज आहार लेकर चले गये. बाप मन में थोडा सोच रहा है, विचार कर रहा है कि यह रहस्य क्या है? संयोग ऐसा था, उसी दिन शाम के समय जंगल जाने के लिए साधु महाराज बाहर जा रहे थे, वहीं सेठ की दुकान थी. जैसे ही उस रास्ते से निकले कसाई लोग कुछ बकरे लेकर के जा रहे थे. बडा हृष्ट पुष्ट एक बकरा किन्हीं कारणों से टोले से निकल कर सेठ की दुकान पर चढ़ गया. बहुत प्रयास किया, धक्का देकर निकालने की कोशिश की, वह बकरा उतरा नही. कसाई ने कहा - सेठ साहब, यदि आप को इस पर दया आती हो और बचाना हो तो 530 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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