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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी पिंगला को और धन्यवाद दिया कि शुभ निमित्त मेरे घर पर आई, इस निमित्त से मेरी आत्मा को वैराग्य मिला. मैंने संन्यास ग्रहण किया. मैं परमात्मा के हृदय में निवास करने वाला बना. हमारा प्रयास होना चाहिए कि परमात्मा के हृदय में मेरा मंगल स्थान बने. नौकरी करते हैं, नौकरी करने वाला व्यक्ति हमेशा लक्ष्य रखता है कि सेठ के दिल में मेरे प्रति कितनी जगह है? मैं अपने सेठ को ऐसा खुश करूं कि उसके हृदय में मेरा निवास बन जाए. आफिसर होते हैं. नौकरी करने वाले व्यक्ति यही सोचते हैं कि यह आफिसर है, अधिकारी है, इसके दिल में कुछ मेरा घर हो जाए. इसके दिल में मेरे लिए कुछ स्थान बन जाए. संसार की भौतिक कामना को लेकर के सेठ के हृदय मे रहने की भावना होती है आफिसर या अधिकारी के मन में प्रवेश करूं, उनके दिलमें मेरे लिए थोडा बहुत स्थान हो जाये. हमारा सतत यही प्रयास होता है. परन्तु कभी यह प्रयास किया कि परमात्मा को प्रसन्न करके उनकी प्रसन्नता से परमात्मा के हृदय में मेरे लिए स्थान बन जाए. ऐसा कभी आज तक नहीं सोचा. लोगों के दिल में घुसने की बात करते हैं, परन्तु परमात्मा के हृदय में मुझे स्थान मिले, आश्रय मिले, परमात्मा के चरणों में रहने का अवकाश मिले, ऐसा उपाय कभी नहीं किया. परमात्मा के हृदय में तभी निवास मिलता है, जब व्यक्ति अपने हृदय में परमात्मा के प्रति पूर्ण स्थान प्रदान करे. जैसे ही आपके हृदय में प्रभु का निवास होगा तो वहां भी आपके लिए उचित स्थान या योग्य अवसर मिल जाएगा. जो चला गया, उसकी चिन्ता में हम सारा जीवन पूरा कर देते हैं. जो पास में है, . उसका आनन्द हम ले नही पाते, उसके आनन्द से वंचित रहते हैं. व्यक्ति के पास किसी कारण से व्यापार में नुकसान लगा, मेरे पास आया. मुझे कहने लगा 15-20 लाख रुपये का नुकसान हो गया. मेरे जीवन में ऐसी भयंकर अशान्ति है, मैं सो नही पाता, पूरा खाना नहीं खाता, सारे दिन यही विचार मेरे मन में आते रहते हैं. और मै इन विचारों से बहुत पीड़ित हूं. कोई उपाय बतलाए. मैंने उसको बड़ा सुन्दर मनोवैज्ञानिक उपाय बतलाया. आप जब बम्बई आए, नौकरी करते थे, सामान्य धन्धा आपने शुरू किया, आपने पुरूषार्थ किया, संपत्ति मिली. आज आपके पास मकान है, फ्लेट है, दुकान है, गाड़ी है, धन्धा चलता है. आपके पास आज 60-70 लाख रुपये की सम्पत्ति है. पन्द्रह लाख चला गया, उसके लिए रोकर के जीवन को पूरा कर रहे हो. आप के पास अभी बहुत सम्पत्ति है, जो है उसका आनंद लो, जो चला गया उसके पीछे जीवन क्यों बरबाद कर रहे हो. हर व्यक्ति, जो चला गया उसी के लिए विचार करता हैं, हमारे पास बहुत कुछ है, यदि ऐसा विचार एक बार भी आ जाये तो गये हए की चिन्ता से मुक्त हो जाये. प्रारब्ध 529 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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