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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: हैं, साधु सज्जन पुरुष मन को और मन के परिणाम को देखते हैं, पेट में यदि कब्ज हो। मल का जमाव हो तो जीभ में छाले पड़ जाते हैं. पेट की खराबी जीभ बतला देती है. अगर मन में गड़बड़ी हो जाये, दुर्भावना उत्पन्न हो जाये तो फिर यह जीभ क्रोध उत्पन्न करती है, कटु शब्द बाहर आते हैं. मन विकृति का परिणाम शब्दों में कटुता आती है, पेट साफ रहेगा, कोई बीमारी नहीं आयेगी. यदि मन साफ है तो कभी अशान्ति नहीं आएगी. यह बहुत सीधा सा गणित है. मन के आरोग्य के लिए ही चिन्तन दिया गया है कि मन का आरोग्य किस प्रकार सरिक्षत रहे? व्यक्ति अपने मन को किस प्रकार स्वच्छ बनाए? हमारी दृष्टि में जो विकार हैं, उनका नाश किस प्रकार करे. आप के अन्दर यदि बीमारी हो जाये, किसी कारण से यदि शरीर का आरोग्य बिगड़ जाये, चलते रास्ते में किसी की सलाह लेंगे या डाक्टर की सलाह लेंगे. उस समय अच्छे से अच्छे डाक्टर को बतला कर उसी की सलाह लेंगे डाक्टर सलाह देता है उसके अनुसार चलते हैं. अन्य व्यक्ति से कभी सलाह नहीं लेंगे. यहां पर भी मोक्ष मार्ग की मंगल साधना में आत्मा को वासना से मुक्त करने के लिए, आत्मा को मन की बीमारी से आरोग्य देने के लिए. चलते रस्ते किसी व्यक्ति की सलाह नहीं लेंगे. यह सलाह साधु सज्जन पुरुषों से लेंगे. मन में अगर हमने ऐसा विचार कर लिया कि यह क्या है? धार्मिक कार्यों के अन्दर या धार्मिक अनुष्ठानों के अन्दर परमात्मा की उपासना में जिसका अंश मात्र भी परिचय नहीं और न कभी समय निकालकर परिचय प्राप्त करने का प्रयास किया। अपनी शिथिलता को छिपाने के लिये तर्क किया जाये कि इसमें क्या है? और इस अविश्वास के साधना करें तो उसमें प्राण नहीं आयेगा। सारी आराधना दूषित बन जायेगी. मन में विषय का जहर उत्पन्न करेगा क्योंकि सारी क्रिया और धर्मानुष्ठान श्रद्धा की भूमिका पर है. उसमें यदि शंका का जहर आ जाए तो आत्मा के लिए वह सारा अमृत अस्वीकार्य बन जायेगा. शरीर बीमार पडता है तो डाक्टर की सलाह लेंगे, इसी तरह से जब मन में अशान्ति पैदा हो जाए. धर्म के विषय के अन्दर यदि मन की स्थिरता न आए, ऐसे समय उसी परिस्थिति में साधु पुरुषों की ही हम सलाह लेंगे कि हमको उचित मार्ग दर्शन दिया जाये. मैं किस प्रकार से अपने जीवन में शान्ति और समाधि को प्राप्त कर सकं. वहीं से सुन्दर उपाय मिलेगा, शान्ति को प्राप्त करने का रास्ता बतलाया जाएगा. व्यक्ति स्वयं अशान्ति पैदा करता है. अपनी अज्ञान दशा से हम अशान्ति को उत्पन्न करते हैं और फिर अशान्ति के लिए हम झंझट रखते हैं, व्यक्ति के पास से पैसा चला जाता है, अशान्ति आती है, वहां पर कोई यह विचार था? चिन्तन नही करता कि परवस्तु से मेरा क्या सम्बन्ध ? पिंगला के एक जरा से निमित्त के कारण भर्तृहरि ने इतने बड़े राज्य का त्याग कर दिया, परन्तु मन में कभी स्वप्न में भी यह नहीं सोचा कि मैंने क्या मर्खता कर दी. इतने बड़े राज्य का त्याग एक स्त्री को लेकर मैंने कर दिया. मन में उस INDAN 528 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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