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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी कर्म और फलोदय आचार्य भगवन्त श्री हरिभद्र सूरि जी महाराज ने धर्म बिन्दु ग्रन्थ के द्वारा विशुद्ध आत्म तत्व का मंगल परिचय दिया. जीवन व्यवहार में रहकर व्यक्ति अपनी आत्मा को वासना से मुक्त रख सके, वह उपाय सूत्रों के चिन्तन के द्वारा दिया है. जीवन व्यवहार आवश्यक है. पूर्व कृत कर्म के अनुसार हर व्यक्ति संसार के अन्दर अलग-अलग प्रकार से अपने व्यवहार का पालन करता है. व्यवहार धर्म से शून्य न हो, कर्त्तव्य से शून्य न हो, नैतिक कर्त्तव्यों का पालन करते हुए, अपने जीवन व्यवहार का पालन करना है. उन महापुरुषों ने जिस प्रकार से अपने जीवन की मर्यादा बनाई, उसी मर्यादा में रहकर के जीवन का निर्वाह करना है. आपको यह मालूम होगा चतुर्मास के मंगल पर्व पर पूर्व के अवतारी पुरुषों ने अपने जीवन की बड़ी सुन्दर मर्यादा रखी थी. चातुर्मास के अन्दर किस प्रकार की आराधना करनी पड़ी? श्री वासुदेव योगेश्वर श्री कृष्ण का, जैन चरित्रों के अन्दर कथानकों के अन्दर, बड़ा सुन्दर जीवन प्रसंग है. चतुर्मास के अन्दर विराधना की संभावना होने से अपने राजमहल से बाहर भी नहीं जाते थे. चार महीने के लिए राजमहल में ही रहते थे, मात्र प्रभु की दर्शना हो या धार्मिक मंगल कार्य हो तो ही राज महल से बाहर निकलते. हम तो परी दनिया में घम के आ जाते हैं. चतर्मास में जब आराधना करने को विशेष प्रसंग आता है, कभी हमारे अन्दर आराधना की रुचि जागृत होती है? व्यवहार ऐसा बन गया, फिर कहने को बहाना निकाल लें, काल फिर गया, समय फिर गया, समय कुछ नहीं फिरा, व्यक्ति के विचार बदल गये, बुद्धि बदल गई. मर्यादाओं से बहुत ज्यादा बाहर चले गये, विमुख बन गए, उसी का परिणाम हमारे जीवन में भयंकर अशान्ति पैदा हुई. __ व्यक्ति आठ महीना कमाता था, चातुर्मास में चार महीना अपने घर पर रहता था, बड़ी शान्ति से परिवार के साथ बडी प्रसन्नता से अपनी धर्म साधना करता, उस आत्मा को सन्तोष होता, हाय-हाय नहीं रहती, आज का जीवन व्यवहार कैसा बना है? यहां पर सारी मर्यादाओं का परिचय दिया है. इन मर्यादाओं का पालन बहुत विवेक पूर्वक दिया गया है. ताकि व्यवहार की शुद्धि से व्यक्ति अपनी शुद्धि को प्राप्त कर पाए. जहां तक व्यवहार निर्मल नही होगा, शुद्ध नहीं होगा, वहां तक व्यक्ति स्वयं के मन को भी निर्मल नही कर पायेगा. डाक्टर के पास जाएं, सबसे पहले वह पेट टटोलता है. अगर पेट में गड़बड़ी है तो बीमारी आयेगी, अगर मन के अन्दर गड़बड़ी है तो अशान्ति आएगी. डाक्टर पेट से देखते 527 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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