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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी __फकीर ने कहा-मुझे मेरे शब्द में विश्वास है. तुम्हारा प्रयोग गलत हो सकता है. चीज बिल्कुल सही है. चलो मैं देखता हूं. फंकीर आए. कहां डाला है तुमने? ___ लोहे की कोठी में, बाप दादों की कोठी है. बहुत बड़ी कोठी है. मैने देखा यह पहले सोने की बन जाए, उसके बाद दूसरे बर्तनों को सोना बनाया जाए. अरे स्टूल लगाकर झांककर देख. मेरा पत्थर कहां गिरा है. गए ऊपर, जब लाइट लेकर देखा, बहुत पुराना था. मकड़ी के जाले लगे हुए थे. कचरा भरा था. पत्थर डाला वह बीच में ही लटक रहा था. लोहे से स्पर्श ही नहीं हुआ. महात्मा ने कहा-बेवकूफ! तू अपनी अक्ल से पहचान. मेरा पत्थर कहां गिरा है. महात्मन्, भूल हुई, वह तो बीच में ही है. कहां से सोना बनेगा? पहले कोठी साफ कर इसमें जो कूड़ा भर गया उसे निकाल. मांज करके स्वच्छ बना, उसके बाद फिर प्रयोग कर फिर देख, चमत्कार दिखता है या नहीं? सारी कोठी साफ की. पूरी मेहनत से उसे मांजा गया, सारे काठ उतारे गए. उसके बाद जैसे ही पारस पत्थर डाला, उसमें परिवर्तन आया. पूरा सोने का बन गया. अति मूल्यवान हो गया. पर्युषण आ रहा है, कल्प-सूत्र के एक-एक शब्द पारस पत्थर हैं. परमात्मा की वाणी है, हृदय से स्पर्श हो जाए, यह जीवन सोने जैसा मूल्यवान परोपकारी बन जाए. जीवन परोपकार का मंदिर बन जाए. संवत्सरी के बाद मत कहना-महाराज. आपने कहा-एक नहीं ढेर सारे पारस पत्थर अन्दर डाल दिए गये कोई परिवर्तन नहीं हुआ. जैसा था, वैसा ही रहा. वही क्रोध वहीं कषाय वहीं वैमनस्यता, वही लोभदशा, वही दुनिया भर की पाप प्रवत्ति परिवर्तन कछ नहीं आया __ न जाने कितने प्रवचन सुने, कितने पारस पत्थर अन्दर चले गए लेकिन परिवर्तन नहीं आया. रोज मन की कोठी साफ कर लेना. बहुत वर्षों का कर्म का काठ चढ़ा है, जरा मांजकर के स्वच्छ करना. पर्युषण पर कोठी साफ करके आना. फिर जैसे ही प्रभु की वाणी दी जाए, और स्पर्श हो जाए तो विचार में परिवर्तन आएगा. जीवन परोपकार का मंदिर बन जाएगा. स्वर्ग जैसा मूल्यवान यह जीवन बन जाएगा. स्वयं को धन्यवाद देंगे कि श्रवण करके मैंने कुछ पाया. कल्पसूत्र का श्रवण कल्पवृक्ष जैसा मनोकामना पूर्ण करने वाला, मोक्ष का फल देने वाला है. सुनने जैसा है. एक दिन भी प्रमाद में मत निकालना. श्रवण करके साधना को पुष्ट करना. नए तरीके से सुनाऊंगा. ताकि आसानी से समझ सकें. “सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्" 526 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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