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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: अपने वैभव और संस्कृति के अनुसार वेष भूषा परिधान करना. कपड़ा कैसे पहनें, नाप किस प्रकार की चाहिए, उसमें क्या विशेषता है? यह मनौवैज्ञानिक दृष्टि से मन पर क्या असर डालता है? इस पर भी विचार करेंगे. "तथा आयोचितो व्यय इति" इससे सुख भी आएगा. आय के अनुसार व्यय करना. जितनी आय है. उसके अनुसार मर्यादा में रहकर व्यय करना, यह नहीं कि घर फूंक कर के दीवाली मनाएं. मन की अशान्ति का कारण है, वह भी मन में असन्तोष पैदा करेगा. पाप के मार्ग में ले जाएगा, गलत तरीके से उपार्जन का रास्ता फिर खोजना पड़ेगा. आज यही हो गया. गलत तरीके से उपार्जन करना पड़ता है. सामने वाले के मकान को देखकर मन में ऐसा विचार पैदा होता है, मैं भी ऐसा बनाऊं. मैं भी इस तरह से रहूं. परन्तु यह नहीं सोचता, अपनी पुण्याई के अनुसार अपनी मर्यादा में मैं रहूं. गलत रास्ता मुझे न लेना पड़े. आगे चलकर के विडम्बना पैदा करेगी. सारी बातें बहुत समझ कर के आचार्य ने लिखी हैं. आज हमारे जीवन से, व्यवहार से, ये बहुत संबंधित हैं. यह तो परमात्मा की वाणी है. स्पर्श कर जाए तो जीवन का परिवर्तन हो जाए.. उन आचार्य पुरुषों ने मार्ग-दर्शन दिया है. थोड़ा बहुत यदि अपने आचार में से व्यावहारिक बना लिया जाए, बहुत बड़ी उपलब्धि आपको हो जाएगी. होती नहीं, क्योंकि रुकावट है. मन के अन्दर मोह ऐसा बीच में बैठा है. मोह के कारण ये शब्द अन्दर जा नहीं पाते. और अन्तर हृदय से आत्मा के साथ परमात्मा की वाणी का स्पर्श नहीं हो पाता. ये मुख्य कारण हैं. मफत लाल सेठ को मालूम पड़ा-कोई बड़े सन्त आए हुए हैं. उन्हें यह भी मालूम पड़ गया, इनके पास पारस पत्थर है. रोज आने लगा, रोज नमस्कार, रोज उनकी भक्ति करे, ऐसा भक्त बन गया क्योंकि प्रलोभन कार्य कर रहा है. धोखेबाज दूकानमें कुछ प्राप्त करने का हो तो दुगना नमस्कार. मफतलाल की भक्ति ऐसी, परन्तु सन्त तो सन्त ही थे. सन्त के जीवन में तो कोई छलावा होता नहीं. वह अपने स्वभाव में स्थिर थे. एक दिन मफतलाल ने कहा-महात्मा जी. मैंने सुना है आपके पास कोई पारस पत्थर है. हां बेटा! साध तो झूठ बोलते नहीं कि है जरूर. भगवन्! कृपा करके यदि आपका पारस पत्थर मिल जाए, मैं रोज परोपकार करूं. रोज सदा व्रत चलाऊं. दीन दुखियों की रोज सेवा करूं यदि आशीर्वाद स्वरूप पारस पत्थर मिल जाए. महात्मा बड़े सरल स्वभाव के थे उनको कहां धन का कोई महत्व था. सहज में मिल गया तो रख लिया. उन्होंने कहा-बेटा. तुम ले जाओ. दे दिया.. 524 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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