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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी तो बहुत सेवा भक्ति करती हैं परन्तु यहां की ठण्ड ऐसी है कि हमारे हाथ कामं में नहीं चलते. हथौड़ी चलती नहीं." अनुपमा देवी ने विचार किया इससे काम नहीं चलता, गुरु महाराज का कहना है-मंदिर की प्रतिष्ठा छ: महीने में हो जानी चाहिए. क्या उपाय किया जाए. सारे कारीगरों को बुलाकर के अनुपमा देवी ने कहा - “कल से तुम्हारी मजदूरी बन्द." कारीगर विचार में पड़ गए, “यह कौन सी सजा?" "पत्थर में तुम काम करते हो, पत्थर का जो चूरा हो वह तुम गठरी बनाकर के लाओ और जो कारीगर जितना काम करेगा, जितना पत्थर का चूरा लाएगा, उसी हिसाब से तोलकर के मजदूरी में चांदी दी जाएगी. कारीगरों को तो चांदी का स्वप्न दिखने लगा. पत्थर के भार से मजदूरी में हमको चांदी मिलेगी. काम ऐसा शुरू हुआ. दो दिन बाद अनुपमा देखने के लिए गई. कारीगरों को बुला करके पूछा - “क्यों कैसा काम चल रहा है?" "माता जी! सारी ठण्डी उड़ गई, वह चांदी की गर्मी थी, इस प्रकार भावना से मंदिरों का निर्माण हुआ. जिन्होंने पसीना उतारा उनका पूरा मूल्य चुकाया गया. तब जाकर के उनका अन्दर से आशीर्वाद मिला. आज भी उस मंदिर के परमाणु पुकार-पुकार करके आत्म जागति देते हैं. आशीष देते हैं परमात्मा का मकान का निर्माण कैसे करना, वह इस विधि में बतलाई गई है. ऐसा नहीं कि कारीगरों से मजदूरी कराएं, बेचारे खून-पसीना एक करे, और फिर उनका पेट काटकर के रवाना करें. कैसा मकान बनाया जाए. बनाने वाला भी अन्तर से आशीर्वाद देकर के जाए, चित से प्रसन्नता देकर के जाए कि मुझे ईनाम मिला, मुझे मेरी मजदूरी मिली, किसी भी गरीब को भी रुलाना मत. गरीब की हाय कभी खाली नहीं जाएगी. उसका पेट भूखा रहता है, परिवार की चिन्ता रहती है, परिस्थिति से मजबूर रहता है. उस समय जलते हृदय से यदि एक भी परमाणु निकला वह एटम बम से भी खतरनाक होगा. कभी किसी की दुराशीष नहीं लेना, उनकी प्रसन्नता उनके अन्तर हृदय से आशीर्वाद लेना. मकान जब बनाया जाए, उनको सन्तोष देकर विदाई देना. हमारे यहां मंदिर की जमीन ली जाती थी, जमीन लेते समय जो वह मांगता, उससे सवाया दिया जाता. ताकि वह व्यक्ति एकदम प्रसन्न होकर के जाए. रोकर के नहीं जाए. ___ आबू का मंदिर जब बनाया, वहां के ब्राह्ममणों की जमीन थी, पूरे ब्राह्ममण समाज को बुलाकर के पूछा-हमें यहां आदिनाथ भगवान का मंदिर बनाना है तुम किस भाव से जमीन दोगे. उन्होंने देखा वस्तुपाल, तेजपाल हैं, बड़े-बड़े श्रीमन्त हैं, कमी क्या रखनी-अरे सेठ साहब, आप लोगों के पास पैसे की क्या कमी है. अगर आदिनाथ भगवान का मंदिर बनाना है तो फिर आप सोना बिछाकर जमीन लीजिए. पैसे से क्यों तोलते हैं? 522 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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