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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी जैन शिल्प में ऐसे विधान आते हैं. मंदिरों का निर्माण कैसे करना? जिन मंदिर निर्माण किस प्रकार का करना? अलग-अलग प्रकार की विशिष्ट कलाएं हैं स्थान देखकर के दिशा देखकर के उस कला का निर्माण होता था. गुरुजनों के मार्ग दर्शन से उनका निर्माण होता था. ___ मंदिर में आप जाइये, आपको परम शान्ति मिले, समाधि मिल जाए. बहुत बड़ा मैडिकल हॉल हैं. मंदिर में जाते ही परमात्मा के दर्शन के साथ मानसिक आरोग्य मिल जाए, यह व्यवस्था होती थी. धूप दीप इसीलिए मंदिर में किया जाता था ताकि सारा वातावरण शुद्ध हो जाए. शुद्ध घर के दीपक में वह ताकत है. अशुद्ध परमाणु में तुरन्त परिवर्तन करता है. ___ गाय के घी का दीपक मंदिर में, घर में, जब जलाया जाता है, वहां का पूरा वातावरण स्वच्छ कर देता है. शुद्ध परमाणुओं में परिवर्तित कर देता है. धूप मन को बड़ा प्रिय है इसीलिए दिया जाता है. मन की एकाग्रता में धूप साधन बन जाता है. चित्त को निर्मलता और पवित्रता देता है मकान में धूप देने का विधान है. वायु- मण्डल को शुद्ध करने के लिए है. क्त यदि मंदिर हो, मकान का निर्माण किया जाए तो बीमारी आ ही नहीं सकती. आज सुविधा की दृष्टि से हम मकान और मंदिर बनाने लग गए. मंदिर भी ऐसा विकृत बना दिया. सीमेंट कोंकरीट का थोड़े से, नाम मात्र दो पत्थर ला करके भगवान को विराजमान कर दिया. न दिशा का निर्देश, न उसमें कोई शिल्प, न उसमें कोई, कला. आए. भगवान को विराजमान कर दिया. बस दर्शन हो जाए, भावनापूर्ण हो जाए, परन्तु उस मन्दिर में कभी शान्ति नहीं मिलेगी. जो प्रार्थना द्वारा मानसिक सन्तोष या मानसिक तृप्ति मिलनी चाहिए, वह नहीं मिलेगी. रणकपुर में जाए, शत्रुजय में जाइये वहां के मंदिरों में संसार को, परिवार को भूल जाएंगे. मानसिक शान्ति का अनुभव होगा. वह अद्भुत शिल्प, किस प्रकार की भावना से उसका निर्माण किया गया है. उसके अन्दर उनके भाव के प्राण हैं. वे परमाणु आरोग्य का कारण बनते हैं. हजारों वर्ष से आज तक टिका है. बनाने वाले कि मकान का एक ईंट भी नहीं मिलेगा. परन्तु मंदिर आज भी हैं. रणकपुर मंदिर जब बनाया गया 444 खम्भे हैं, ताजमहल उसके सामने कुछ नहीं, अदभुत शिल्प है. कैसे उस मंदिर का निर्माण उस पुण्यशाली ने किया होगा. आज से हजार वर्ष पहले चौदह करोड़ रुपया खर्च किया. एक ही व्यक्ति ने निर्माण किया. पूरे विश्व में ऐसा शिल्प नहीं मिलेगा. जिस समय आधुनिक साधन नहीं थे, उस समय इसका निर्माण हुआ. ऐसे सुन्दर प्राकृतिक वातावरण में निर्माण किया. मंदिर में प्रवेश करते ही संसार को भूल जाएं. यह 520 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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