SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 546
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - मिलेगा उस अनाज के अन्दर? न जाने किस-किस जगह से अनाज आया हुआ, न जाने . उसमें कितने जीव जन्तु होंगे. उसी चक्की से गेहूं पीस करके आता है. सारे तत्व उसके नष्ट हो जाएंगे. चक्की से पीसा आटा लीजिए, बर्तन पकड़ नहीं सकते, इतनी गर्मी उसमें होती है. गेहूं का सारा सत्व उसमें जल जाता है. वही घर के अन्दर हाथ चक्की के द्वारा पीसा जाए तो उसका स्वाद अलग होगा. उस रसोई से अपूर्व पोषणं मिलेगा, तृप्ति मिलेगी. सुन्दर व्यायाम मिलेगा शरीर को. औरतों का यही व्यायाम था, कुएं से पानी लाती, घर में गाय भैंस होती. हिन्दू जाति में अगर इतनी जागृति आ जाए कि एक-एक गाय-भैंस रखें तो कसाई खाने में एक भी गाय भैंस नहीं जाए, यह मेरी मां है, इसके दूध से मेरा पोषण हुआ. वह मेरे लिए अमृत है. जिसने बाल्यकाल से आज तक मुझ पर उपकार किया यदि वह मां वृद्ध हो जाए, उसे कसाई के हाथ कैसे बेचूं जीवन पर्यन्त निर्वाह करूंगा. गाय का मल-मूत्र तक औषधि में काम आता है, खाद के काम आता है, मर के भी चमड़ा आपको दे जाती है, हड्डी दे जाती है. जीवन पर्यन्त सारा जीवन अर्पण करती है, घास खाकर के अमृत देती है, दूध देती है. इन्सान क्या देता है, जिए वहां तक जंजाल और उपाधि. नौ की लकड़ी और नब्बे खर्च. जैसे ही स्वार्थ निकला हम तुरन्त उसे वहां भेज देते हैं. दोष देते हैं सरकार को अन्य जातियों को, अन्य सम्प्रदाय के लोगों को और धार्मिक भावना भड़का देते हैं. एक भी हिन्दू यदि ऐसा नियम करता है, हर हिन्दू यदि नियम कर ले कि घर में गाय रखूगा. एक तो जीव दया का सबसे बड़ा पालन होगा, एक गाय कत्ल खाने के लिए नहीं मिल सकती. कसाइयों के पास जाती तो अपने द्वारा ही है, एक तरफ हम गाय के लिए आमरण अनशन करें. गाय के लिए न जाने क्या-क्या लम्बे-चौड़े भाषण दें. उसी गाय को यदि दे देते हों कसाई के हाथ और फिर जन्माष्टमी के मंगल प्रसंग पर कृष्ण के नाम की माला गिनते हों तो यह नाटक कैसा होगा? हमारे जीवन में कम से कम इतना तो होना ही चाहिए कि सामाजिक मर्यादा में रहकर परिस्थिति पर विचार किया जाए, ताकि समस्याओं में से समाधान प्राप्त कर सकें. थोड़ा बहत ऐसा हम विचार करें, निर्णय करें तो हम बहुत कुछ पा सकते हैं. खानपान की सारी व्यवस्था भी आज विकृत बन गई, खुला मकान शहर से बाहर रहने का जहां सतत भय में जीवन पूरा करना पड़े, जरा भी भूल प्रमाद हो तो हमारे जीवन के साथ कभी न कभी धोखा हो सकता है. आचार्य भगवन्तों ने इसीलिए अपने भावीकाल को सामने रखकर के सत्रों द्वारा जीवन व्यवहार का परिचय दिया. कहां रहें? किस प्रकार रहें? कैसी भूमि पर मकान का निर्माण करें कि जहां जीवन सुरक्षित रहे. किस प्रकार का आहार करें? किस प्रकार के आहार के द्वारा जीवन का निर्वाह करें? वो सारा परिचय इन सूत्रों द्वारा दिया गया. खानपान 517 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy