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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी हम खेल कर रहे हैं. जितनी आधुनिक सुविधाओं का आश्रय लेते हैं, उतने ही स्वयं में गुलाम बनते जा रहे हैं. पराश्रित बनते जा रहे हैं. अप्राकृतिक वस्तुओं का अधिक मात्रा में सेवन, सुख-सुविधा के लिए नहीं बल्कि अपने शरीर पर अत्याचार कर रहे हैं. इसे मौत के नजदीक पहुंचा रहे हैं. घर के अन्दर इतने आधुनिक साधन बन गए, गैस चूल्हे पर रसोई पकाइये, क्या स्वाद आएगा? सुविधा चाहिए, धुआं नहीं चाहिए, चूल्हा फूकना न पड़े, झट से हो जाए. जो चीज आधे घण्टे में पकनी चाहिए, उसे यदि दस मिनट में पका देते हैं, इतनी अधिक मात्रा में गर्मी उसमें पैदा करेंगे, चीज के अन्दर से सत्व चला जाएगा, विटामिन जल जाएगा, कुछ भी उसके अन्दर नहीं मिलेगा. उसकी सारी मधुरता खत्म हो जाएगी. पेट भर लेंगे, स्वाद, मिल जाएगा नमक मिर्च के कारण, बाकी कोई पोषक तत्व उसमें नहीं मिलेगा. उसके परमाणु शरीर के लिए हानिकारक बनेंगे. उत्तेजना देने वाले बनेंगे. उस आहार में भी उतेजना होगी. दिमाग के अन्दर जो शान्ति और समाधि मिलनी चाहिए मन के विचारों को जो शीतलता मिलनी चाहिए, वह शीतलता उसमें से नहीं मिलेगी. उद्विग्नता पैदा होगी. मन में तनाव पैदा होगा. घर के अन्दर जिन साधनों का उपयोग करते हैं, बर्तन बासन का, कोई जमाना था शुद्ध धातु का उपयोग किया जाता. आयुर्वेदिक दृष्टि से जो धातु हमारे शरीर को पोषण देने वाला, हमारे शरीर को शक्ति देने वाला, जिसका परमाणु पेट में जाए तो शक्ति संचय करे. शक्ति में वद्धि करे. वह तो चला गया. लोहे के बर्तन आ गए. किसी जमाने में कैदियों को दिया जाता था. ___"सज्जन पुरुषों के यहां चांदी के बर्तन होते, कांसे के बर्तन होते, पीतल के बर्तन होते, उसके अन्दर जो आपने रसोई बनाई हो या उस थाली में आप भोजन करते हों वह परमाणु अन्दर जाकर पोषण देता शरीर की शक्ति में वृद्धि करता. सात्विक विचार उत्पन्न करता. चला गया जो औषधि का काम करता था. आज का साइंस कहता है. आप माने या न माने स्टील और एलोम्यूनियम विशेषकर के कैंसर का कारण माना गया है, असाध्य व्याधियों का कारण माना गया है, अशुद्ध परमाणु है. इसका परमाण शरीर के लिए घातक माना गया, उसी परमाणु में, उसी बर्तन में यदि आज रसोई पकाएं, उसी में यदि आप पानी उबालें, उसी को भोजन के उपयोग में लें तो वो शरीर के लिए बड़ा भारी नुकसान देने वाला है. लोगों को सुविधा चाहिए, मापने की झंझट नहीं, साबुन से पोछा और साफ. मात्र सुविधा के लिए शरीर पर रोज अत्याचार किया जा रहा है. रहने का मकान गलत, खाने का बर्तन गलत, पहनने का कपड़ा गलत. प्राकृतिक दृष्टि से जो व्यवस्था दी गई थी गृहस्थ जीवन के लिए सारी व्यवस्था से प्रतिकल आज व्यवस्था है. अनाज पिसा करके खाते हैं, क्या 516 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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