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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी साधु शब्द का अर्थ लिया है सज्जनता से. जहां सज्जनों का निवास हो, अच्छे-अच्छे व्यक्ति रहते हों, जहां से धर्म की प्रेरणा मिलती हो, सुन्दर संस्कार मिलते हों, हमारे जीवन व्यवहार में जहां से नई प्रेरणा मिलती हो, ऐसी जगह पर अपना निवास स्थान बनाएं, तथा स्थाने गृह करणमिति // 16 // उचित और योग्य स्थान में घर का निर्माण करना. कौन सा उचित स्थान? श्मशान न हो, कोई गंदी जगह न हो, देवी-देवताओं का निवास स्थान न हो, क्योंकि परिवार है, गृहस्थ है, रूठकर के किसी न किसी प्रकार का प्रकोप हो सकता है. मैं महाराष्ट्र में था, वहां इचलकरंजी में मेरा आना हुआ. वहां एक सज्जन श्रावक श्री मन्त सांगली बैंक के डायरेक्टर, सेठ फूलचन्द भाई मेरे पास कोल्हापुर आए, मुझसे कहा महाराज इचलकरंजी आप पधारें, मेरे यहां आप जरूर पधारें, मैंने कहा - “क्यों? क्या बात है?" "हमारे घर में बड़ी अशान्ति है, कोई न कोई बीमार रहता है या नुकसान होता है. उससे भी भयंकर बात अचानक आग लगती है, मकान बन्द और आग लग जाती है. बाहर से लोग चिल्लाते हैं." सूत्र में कहा है - उचित और योग्य स्थान पर ही मकान बनाना, यह नहीं कि सस्ता मिल गया, अच्छा लगा और बना लिया. कई बार ऐसी घटनाएं भी होती हैं. मैं वहां पर गया, जाने के बाद जब मकान पर गया, मैं अन्दर से बाहर निकला और एक जगह अन्दर आग लगी, वहां रखा सारा सामान जल गया. कोई नहीं था. ऊपर पूरा खाली था. ऊपर जाकर के घूम करके मैं आया, नीचे उनको मंगलाचरण सुनाकर जैसे ही निकल रहा था, आवाज आई कि पुनः ऊपर आग लगी है. मेरे मन में शंका हुई कि यह उचित स्थान नहीं है, मैंने उनको बुलाकर कहा - "आप म्युनिस्पैलिटी में जाओ. जाकर इसका पुराना रिकार्ड देखो कि इस स्थान पर पहले यहां क्या था?" वह जब गए, पूरी खोज करवाई, अस्सी साल पहले वहां कब्रिस्तान था. धीरे-धीरे किसी कारण से वह स्थान खाली हो गया, संयोग से वह सारी जमीन खरीद ली. खरीद करके उन्होंने सोचा यहां बंगला बनाया जाए. बंगला बनाने के बाद जब रहने के लिए गए, तब यह समस्या पैदा हुई. मेरे मन की शंका सत्य निकली, मैंने कहा - अब तो कोई उपाय नहीं है. बंगला उठाकर आप यहां से ले जा तो नहीं सकते, एक उपाय बतलाता हूं, नीचे कोई आत्मा दबी हुई है, उस प्रेतात्मा का यह प्रकोप है. आप घर के अन्दर एक स्थान बना दीजिए. आला बना दीजिए. वहां रोज शाम को तेल का चिराग करिए और प्रार्थना कीजिए. मैं तुम्हारे स्थान को नुकसान पहुंचाने वाला नहीं, तुम्हारा स्थान मैंने घर में निर्माण कर दिया है, 512 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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