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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी “स्थान त्यागः इति” जहां पर भय की संभावना हो सतत मौत सामने दिखती हो, जहां पर इस प्रकार के व्यक्ति रहते हों, वैसे स्थान पर सज्जन पुरुष नहीं रहते, वैसी खतरनाक जगह का त्याग कर देना चाहिए. मिलिटरी का कैम्प हो, बारूद गोले का भण्डार हो, वहां पर यदि बंगला बनाएं तो आज नहीं तो कल कभी न कभी खतरा पैदा हो सकता है. कभी वह दुर्घटना का रूप ले सकता है. ऐसे स्थान में मकान नहीं बनाएं, जहां चारों तरफ शराबी रहते हों, जुआ खेलने का अड्डा हो, बदमाशों का आना जाना हो, कभी न कभी तो वहां भी खतरा पैदा होगा. परिवार के संस्कार तो बिगाड़ेंगे. सतत मन में भय और चिन्ता रहेगी. यदि विवाद में बीच बचाव करने जाएं तो सफाया आप का होगा. तथा उपप्लुत स्थान त्याग इति इस सूत्र का कथन यही है, इसका भावार्थ यही है, जहां भय की संभावना हो, मन की शान्ति नष्ट होने वाली हो, चित्त की समाधि को नुकसान पहुंचता हो, ऐसी किसी जगह पर अपने रहने का मकान नहीं रखना. पैट्रोल का पम्प हो, आप पास-पड़ोस में रहते हों और यदि कभी अग्नि दुर्घटना हो जाए तो अग्नि संस्कार बिना पैसे हो जाएगा. मेहनत भी न पडे. . नदी के किनारे निवास रखा, हवा खाने के लिए बंगला बनाया, कभी हवा भी हो जाएगी. न जाने कब फ्लू आ जाए, पता नहीं कब हमारे लिए मुसीबत बन जाए, न जाने कब बंगला कमजोर बन जाए, ऐसे कई कारण हैं, किसी भी ऐसी जगह पर मकान का निर्माण नहीं करना, जहां इस प्रकार के प्राकृतिक कोप की संभावना हो. बदमाशों का अड्डा हो. जहां गलत संस्कार परिवार में आने की संभावना हो. ऐसे जगह पर कभी मकान मत बनाना. मकान तो रहने के लिये गृहस्थ की आवश्यक वस्तु है, उसके लिये सूत्रकार ने दूसरे सूत्र के द्वारा निर्देश दिया "तथा-स्वयोग्यस्याश्रयणमिति” | // 17 // अपने रहने लायक़ मकान का निर्माण जरूर करें, परन्तु घर किस प्रकार का हो "तथा प्रधान साधु परिग्रह इति" | // 18 // जहां सज्जन पुरुषों का परिवार रहता हो, धार्मिक पुरुषों की जहां पर बस्ती हो, अच्छी विचार धारा के लोग जहां पर रहते हों, ऐसे मोहल्ले के अन्दर जहां कुसंस्कार का प्रवेश नहीं हो. सज्जन लोगों की बस्ती हो, परिवार में, बालकों में, आने वाली पीढ़ी के अन्दर सुन्दर संस्कार मिलें, उनको देखकर के बहुत कुछ सीखा जाए. आचार सम्पन्न लोग. ऐसे स्थान पर अपने रहने योग्य स्थान का निर्माण करें. AC 511 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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