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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - भगवन्त के शब्द हैं, क्षण मात्र की कदाचित प्रसन्नता यदि मिल जाए परन्तु परमात्मा / की दृष्टि से उसका भविष्य दुखमय होगा. दर्द से भरा हुआ होगा. अन्धकारमय होगा. बहत बड़े सम्राट के यहां दासी रहती थी, शयन गृह के अन्दर राजा के बिस्तर लगाने आई. रोज बिस्तर लगाया करती, राजा के शयन गृह की सारी व्यवस्था वह करती. एक दिन अचानक दासी के मन में आया, इतनी सुन्दर शैया, शयन करने का इतना सुन्दर स्थान? दो घड़ी यदि इसमें सो कर देख लें तो यहां कौन देखने वाला है? राजा की शैया में दासी लेट गयी और नींद आ गई, बड़ी कोमल शैया थी, सारा वातावरण सुन्दरमय, अनुकूल था. रात्रि में जब राजा वहां पर आया और देखता है कि मेरे शयन गृह में दासी सोई हुई है. अपने नौकर को कहा -कोड़े लेकर के आओ और इसे लगाओ. इसका इतना बड़ा साहस कि वह मेरे पलंग पर यह आकर के सो गई. सिपाही के कोड़े लगाते ही वह दासी एक दम उठी, और देखा कि राजा स्वयं सामने खड़े हैं. अपनी भूल का उसे अहसास हुआ, भूल के लिए उसने क्षमा याचना की. राजा का आदेश था सिपाहियों ने कोडे लगाने शुरू कर दिये, दासी हंसने लग गई. जहां रोना था, वहां वो हंसने लगी.. राजा ने कहा - कोड़े मारना बन्द कर दो. दासी से पूछा-तुम्हारे हंसने का क्या कारण है? राजन्! और कुछ नहीं, दो घड़ी मैंने शयन किया, दो घड़ी का आनन्द लिया, आपके पलंग पर सो कर, उस पर मुझे यह सजा मिली, कोड़े खाने पडे. दो घड़ी के आनन्द का यह इनाम मिला. तो राजन जो इस पर रात दिन सोते हैं. उनको कर्म की कैसी मार पडेगी. वही सोच रही हैं. इसीलिए हंस रही हं. अपने जीवन में हम भले ही बाहर के भौतिक सुख प्राप्त कर लें, अपनी कामना की क्षणिक तृप्ति कर लें. परन्तु वह कभी तृप्ति नहीं बनती और ज्यादा अतृप्ति अन्दर से प्राप्त करती है. उसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति पाप का आश्रय लेता है. ऐसा कोई साधन मुझे नहीं चाहिए जो पाप के आगमन का साधन बने. कैसे रहना? इस बात पर विचार चल रहा था. संसार का अति सुन्दर परिचय इन सत्रों द्वारा दिया. गृहस्थ है घर-बार लेकर के रहता है. परिवार के साथ रहता है. गृहस्थ धर्म का पालन पोषण करता है, उसका संचालन करता है. तो गृहस्थ के लिए किस प्रकार का गृह निर्माण करना, उसे निर्देश दिया और सर्वप्रथम यह सूत्र बतलाया : “उत्पातसंकुलः स्थानत्यागः" गृहस्थ अपनी मानसिक शान्ति के लिए, चित्त की समाधि के लिए, ऐसे उपद्रव वाले स्थान का परित्याग कर दें, जहां रहने से उपद्रव की संभावना हो, रात दिन किसी न किसी प्रकार का भय अपने अन्दर बना रहे तो अभय की उपासना किस प्रकार करेगा? जहां पर सतत भय का प्रवेश हो, वहां पर अभय का आगमन कैसे होगा? 509 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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