________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी पुण्य क्रिया का मंगल प्रसंग आ जाए, हम उदास बन जाएंगे. मूर्च्छित बन जाएंगे. बड़ी लाचारी वहां पर हम प्रकट करेंगे. इस महान पुरुष ने शब्द के द्वारा उस चैतन्य का परिचय दिया, जिसका परिचय प्राप्त करने के लिए बहुत उंचाई पर जाना पड़ता है. साधना की ऊंचाई पर जाने वाला व्यक्ति, साधना की पूर्णता को प्राप्त करने वाला व्यक्ति, स्वयं की आत्मा के धर्म तत्व का परिचय प्राप्त करता है. उसका परिचय शब्दातीत है. शब्द के माध्यम से जिसका परिचय देना संभव नहीं. बहुत दूर की चीज है. नजर में नहीं आता है, लैंस लगाते हैं, चश्मा लगाते हैं. यदि उससे भी दूर की कोई वस्तु हो तो देखने के लिए दूरबीन लगाया जाता है. उससे भी आगे की ऊंचाई पर यदि कोई चीज देखते हैं तो टेलिस्कोप का उपयोग किया जाता है, ग्रह नक्षत्रों को देखने के लिए आकाश की चीजों को देखने के लिए. आंख से जो न दिखे, उसका मतलब यह नहीं कि उसे मानें ही नहीं, मानना तो पड़ता है. हमारे पास वह दृष्टि नहीं, दृष्टि का विकास नहीं, साधना के बिना साध्य को देख नहीं सकते. आत्मा की जो अनन्त शक्ति है, अनन्त शक्तिमय हमारी चेतना है. उसे देखने के लिए, उसके अनुभव के लिए, साधना की उच्च भूमिका चाहिए. उच्च भूमिका को प्राप्त करने के लिए उसकी प्राथमिक स्थिति का इस ग्रन्थ द्वारा परिचय दिया कि हमारी वर्तमान परिस्थिति किस तरह की होनी चाहिए. वर्तमान जीवन का किस प्रकार से साधनामय परिचय होना चाहिए. उसकी पूर्व भूमिका इसमें बतलाई है. सर्वप्रथम आपको एक तरीका बतलाया गया, उपार्जन का तरीका, द्रव्योपार्जन, व्यावहारिक प्रसंग, विवाह शादी के प्रसंग, कैसे संस्कारित होने चाहिए जिन क्रियाओं के अन्दर अपने संस्कार का परिचय दूसरे व्यक्तियों को मिले, इस प्रकार का होना चाहिए, हमारी हरेक क्रिया धर्म क्रिया होनी चाहिए. हरेक क्रिया से लोगों को प्रेरणा मिले, लोग स्वयं की जागति प्राप्त करें विरक्त होने की भावना उनमें पैदा हो. हमारी क्रिया से हमारे आचरण और व्यवहार से अनेक आत्माओं को संसार से विरक्त होने की प्रेरणा मिलनी चाहिए. संसार में जितने भी सुख भोग हैं, उनका परिणाम दुखमय देखा है,वर्तमान में पौद्गलिक आनन्द जो भी ले रहे हो उसका परिणाम रुदनमय होगा. ___ आज की प्रसन्नता कल के लिए रुदन बनेगी. आज जिस चीज का आनन्द लेते हैं, कल उसका वियोग हृदय में दर्द पैदा करेगा. परमात्मा ने ऐसे आनन्द का परिचय दिया, ऐसी प्रसन्नता का परिचय दिया, जो साधना से उपार्जित की जाती है, जिसका कभी वियोग नहीं होता. जिसके आनन्द में कभी रुदन की संभावना नहीं. उस परमात्मा की प्राप्ति का साधन इन सूत्रों द्वारा बताया गया है. भले ही व्यक्ति क्षणिक सुख के लिए कदाचित् अपने भविष्य को भूल जाए, भविष्य को देखने की दृष्टि खत्म हो जाए. भगवन्त ने कहा - खणमित्त सुक्खा बहुकाल दुःखा DPM 508 For Private And Personal Use Only