________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी प्रस लेटा की आसातना की. मुझे क्षमा करें. मैं क्रोध की आग में जल रहा था. मेरे जै जाने वाली आत्माओं का रक्षण करें. अपने शिष्य से हाथ जोड़कर प्रार्थना की. शिष्य भी कैसा? स्वयं तो मुझको भी तार दिया. ऐसा पश्चाताप जो क्रोध की आग में दूसरों को जलाते थे. जहा आत्मा का गुण जलता था. उनका यह चमत्कार कि क्रोध पर क्रोध उत्पन्न किया. सारे कर्म जल कर के भस्म हो गये. रात्रि में गुरु भी केवली बन गये. __ “तीन्नाणं तारयाणं उत्तम आत्मा स्वयं तरे और दूसरों को तारे, क्रोध तो था. पर क्रोध पर कैसे विजय प्राप्त किया? कैसी शिक्षा मिली? कैसी सहन करने की ताकत? यदि संयोग से ऐसे गुरु हमें मिल जायें तो गुरु को रास्ते में ही पटक कर चले जाएं कि यहां कोई कपाल क्रिया कराने आया था. गाली सुनने के लिए दीक्षा ली थी. गुरु के शब्द को सहन करें, ये तो चोट है. तब आत्मा का विकास होता है. निर्माण होता है. गुरु के शब्द मेरे लिए आशीर्वाद स्वरूप है. गुरु शब्द जब मिठाई जैसे लेंगे, समझना मेरा आत्म कल्याण होगा. आज इतना ही. “सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्" म भूलों के संस्कार लेकर ही हम जगत में आए हैं. हर आदमी भूलों से भरा है, परन्तु वह सचमुच महान व होनहार है जो भूलों सेकुछ-न-कुछ सीखता है और उन्हें सुधारने का प्रयत्न करता है. CE AUR 506 For Private And Personal Use Only