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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - की धारा बह निकली. शिष्य की समता कैसी? एक दिन का लिया हुआ संयम, नवकार भी नही आता था. रात्रि में संयम लिया. अपूर्व समभाव मेरे गुरु महाराज को जो कष्ट हो रहा है उसका मै निमित्त बन रहा हूं. ____मैं कैसा पापी शिष्य हूं? कोई शिष्य तो गुरु महाराज को आकर शान्ति दे. मेरे निमित्त से मेरे गुरु महाराज को कष्ट हो रहा है. अशान्ति पैदा हो रही है. मै कितनां दुर्भागी हूं. मैंने कैसा पाप किया कि मेरे कारण गुरु महाराज को क्रोध पैदा करना पडे. मैं और सावधान होकर के चलूं. जरा जागृति में चलूं. जरा उपयोग पूर्वक चलूं, ताकि गुरु महाराज को जरा भी पीडा न पहुंचे. ऐसी अर्पित समता. खून की धारा बह निकली, समता के अन्दर संयम श्रेणी मे जैसा विकास हुआ, अन्तर्मन के अन्दर केवल ज्ञान, केवल दर्शन की प्राप्ति, उस आत्मा को हुई. मात्र गुरु के प्रति सद्भाव और समभाव का यह चमत्कार. महावीर को साढ़े बारह वर्ष बाद मिला, उस पुण्यशाली को साढ़े चार घण्टे बाद मिला. अनन्त शक्तिमय चेतना उसकी विकसित हो गई. ज्ञान के प्रकाश में सब कछ दीखने लगा. गुरु महाराज के मन में आया कि यह चमत्कार चौदहवें रत्न का. एक डन्डा पड़ा और सीधा हो गया. कैसा सीधा चल रहा है. मुझे अब जरा भी अडचन नहीं. उन्हें क्या मालूम कि शिष्य सर्वज्ञ बन गया. अनन्त शक्तिमान, इसकी आत्मा केवली बन चुकी है. बहुत समय तक एकदम सीधा चलने के बाद गुरु के मन में शक हुआ कि अंधेरे में इसे मालूम कैसे पड़ रहा है? मुझे जरा भी तकलीफ नहीं कोई भी वृक्ष की डाली मुझे स्पर्श नहीं कर रही है. ___कैवल्य ज्ञान से कोई भी चीज छिपी नहीं. अनन्त शक्तिमान आत्मा उस समय प्रकट होती है. अपनी पूर्णता को प्राप्त होती है. जरा भी गुरु महाराज को हिलने डुलने का नहीं. मन में शंका हुई. कोई दैविक शक्ति है या कोई ज्ञान प्रकट हुआ. ___ गुरु महाराज ने पूछा-क्या तुम्हे कोई ज्ञान उत्पन्न हुआ है? प्रतिपाती या अप्रतिपाती, आकर के चला जाए, ऐसा ज्ञान या आकर के न जाये ऐसा ज्ञान. केवल आत्मा की भी नग्रता देखिए. जब पूछा तो यही जवाब मिला-भगवन्त आप की कृपा से केवल भगवन्त ही ऐसी छद्भस्थ आत्मा के उपकार का स्मरण होता है. ये मिला किसकी कृपा से उनकी दृष्टि में यह नहीं आता कि मेरा गुरु क्रोधी शिथिलाचारी है, गुरु तो चन्डाल है. दुर्गति मे जाने वाला है, ऐसा नही सोचा. इनकी कृपा का परिणाम है. केवली आत्माओं का भी विनय देखिए. उपकारी के उपकार का कितना सुन्दर स्मरण. भगवन्त आपकी कृपा से. गुरु महाराज समझ गये, बोध हो गया. यह तो केवली बन चुका है. उसी क्षण गुरु ने एकान्त में कहा-आप यहां रुकिये. उतर गये. उतरकर के शिष्य को तीस प्रदक्षिणा दी. बहुमान पूर्वक पाप का पश्चाताप किया. भगवान. मैंने केवली की आसातना की, सर्वज्ञ 505 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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