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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी में नहीं आयेगी. बच्चों में भावना जरूर आ जायेगी. परन्तु अवस्था का दोष अतिशय लोभ बढाता है यह अवस्था ही ऐसी होती है. पूर्वकृत संस्कार ऐसे होते हैं. बुढापे में वैराग्य आ गया, घरवालों ने सोचा कि अच्छा है. बेचारे क्या करें बोल तो सकते नहीं घर के बड़े थे. शर्म ऐसी चीज है, मर्यादा ऐसी चीज है, बहुत शानदार दीक्षा हुई. साधु समुदाय में सबके साथ रहना पड़ता है. सब प्रकार का व्यवहार पालन करना पड़ता है. यहां उचित अनुशासन और विवेक लेकर चलना पडता है, गुरुजनों के आदेश का पालन करना पड़ता है, वह हो नही पाया. गुरु भगवन्त ने एक ऐसा रास्ता निकाला. कहा-देखो तुम्हारे संयम में भी विराधना न हो, जितने भी मेरे साथ संयमी आत्मा हैं उन सबको क्लेश का निमित्त न मिले. इससे अच्छा है, तुम अकेले रहो. कोई ऐसे अशुभ निमित्त न मिले. अपनी आराधना में भी तम विकार पैदा न करो. शायद इस प्रकार के अभ्यास से जीवन में परिवर्तन आ जाये. गुरु आज्ञा थी सर्वोपरि. एकान्त में जाकर गांव से बाहर दूर बगीचे में जाकर रहने लगे. स्वभाव ऐसा विचित्र था उनको चण्डरूद्राचार्य के नाम से बुलाते. चन्ड शब्द अति क्रोधी आत्माओं के लिए प्रयोग किया जाता है. चण्ड, चण्डाल शब्द से ही बना है. चन्ड रुद्राचार्य नाम के आगे चण्ड शब्द का प्रयोग किया गया. पकृति भी बड़ी खूखार थी क्रूर थी. अति राग क्रोध का पारावार था इनके अन्दर एकान्त में रहते. जंगल मे ध्यान अवस्था में रहते, संयम की आराधना के लिए गांव में जाकर एक बार भिक्षा ले आते. गांव के अन्दर- बहुत सारे राज पुत्र थे, राज कमार थे, क्षत्रिय पत्र थे. घोडा लेकर के शाम को घूमने निकलते. एक दिन ऐसा संयोग बैठा पांच-दस युवक घोड़ा लेकर उस बगीचे में आए जहां पर चण्ड रुद्राचार्य अपनी साधना कर रहे थे, वहीं पर आए, अकेला देखकर राजकुमारों ने कहा-स्वामी जी, आप अकेले हो, इस बूढापे में एक तो पांव दबाने वाला चाहिए, एक तो चेला चाहिये, भिक्षा गोचरी लाने वाला. अकेले कैसे रहोगे? अलग-अलग प्रकार से कहना शुरू कर दिया. क्रोध की आग तो जल रही थी इन्होंने घी डालना शुरू कर दिया, क्रोधी तो थे ही. निमित्त मिला. बच्चों ने आपस में कहा-तुम दीक्षा ले लो वह कहता तुम ले लो. आपस में मसखरी शुरू की. ___महाराज से कहा-महाराज, मैं दीक्षा लूंगा. आप देंगे? मैं भी लेना चाहता हूं. यह भी लेना चाहता है, जरा ठिठोली की. यहां तो आग लगी थी तो अब ज्वाला बनी. समय तो लगता है चूल्हा जलाने में भी समय लगता है. फूंक मारना पडता है. ऐसी भंयकर ज्वाला अन्दर जली. ऐसा भयंकर क्रोध आया, संध्या का समय प्रतिक्रमण मे बैठे हुए. गर्जना करके उठे. कितने थे सब भगे. परन्तु एक पकड़ में आ गया. बेटा! दीक्षा लेगा? हमको बेवकूफ बनाता है, तेरे को दीक्षा देकर ही रहंगा. भयंकर क्रोध था. उस लड़के को पकडा. आवेश था और माथे का केश लुंचन कर दिया. क्रोध 502 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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