________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी = उसी आधार से उन्होंने चिन्तन किया. उसी आधार से आगे बढे. उसमें सर्व प्रथम एक सूत्र बतलाया है. रोग की उत्पति का मूल कारण. कहां से रोग जन्म लेते हैं? "रागद्वेषैः रोगो जायते" यह बडा महत्वपूर्ण सूत्र है, आयुर्वेद का. राग और द्वेष के परिणाम से रोगों का जन्म होता है. अति क्रोध, अतिकाम, अति संसार की चीजों के प्राप्त करने की लालसा. मानसिक दरिद्रता से आत्मा जब पीडित होती है. यह वैज्ञानिक सत्य है, वह आत्मा धीमे-धीमे रोगी बनती है. अति राग रोग उत्पन्न करता है, प्राप्ति की अति लालसा अनेक प्रकार की बीमारियों को उत्पन्न करती है. या तो राग से या फिर द्वेष से कष्ट के द्वारा, वैर के द्वारा, भयंकर व्याधियों का जन्म होता है. रोगों का जन्म स्थान ही राग और द्वेष है. भगवान महावीर ने इसका सबका सुन्दर उपचार बतला दिया. क्षमा, मैत्री, प्रमोद भावना, ये सारी दवा हैं, इनका डोज लिया जाये तो सारी बीमारी चली जाये. प्रतिवर्ष पर्युषण मे एक डोज दिया जाता है. एक डोज पूरे वर्ष काम करता है. होम्योपैथी मे हाई पोटेन्सी होती है. लाख, दो लाख, पावर की दवा तीन महीने में, छ: महीने में एक डोज दिया जाता है, ज्ञानियों ने पर्यषण में संवत्सरी का ऐसा हाई पोटेन्सी मैडिशन दिया. एक बार लीजिए पूरे वर्ष तक आराम आनन्द रखेगा. वैर विरोध की सारी भावना को नष्ट कर देगी. पर्युषण पर्व के प्रभाव से हृदय में कोमलता आ जाये. बहत सारी बीमारियों को जन्म देने वाला, परिवार में अशान्ति का कारण, पारिवारिक क्लेश का कारण पिता-पुत्र में दीवार खींच देने वाला. परिवार में भेद की दीवार खड़ी कर देने वाला क्रोध परमात्मा का द्वार बन्द कर देगा. व्यापार में रुकावट आएगी. ग्राहक दूर. जीवन में सबके अप्रिय बन जायेंगे. कोई मित्र नही मिलेगा. अति क्रोधी आत्माओं का यही परिणाम होता है. मौन इसका सुन्दर से सुन्दर उपचार है. बडी सुन्दर दवा है. जब भी क्रोध आ जाये, स्थान का परित्याग कर दीजिए. तुरन्त पानी पी लीजिए. उत्तेजना बड़ी खतरनाक होती है जितना सहन करेंगे उतनी शक्तियों का विकास होगा. महावीर का यह सिद्धान्त यही आदर्श देता है. जितना सहन करोगे उतनी ही शक्ति विकसित होगी. इत्र बनाते समय गुलाब के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, कितना कष्ट सहन करना पडता है. उबाला जाता है, मसला जाता है, पूरा अर्क निकाल दिया जाता है. उसकी महक कैसी? जीवन के अन्दर अपनी साधना में यदि सुगन्ध पैदा करना है तो फिर साधना में सुगन्ध पैदा करने के लिए इतनी कसौटी तो पार करनी पड़ेगी. हमारे आगम सूत्र में एक बड़ी सुन्दर बात आती है. आयु के अंतिम चरण में दीक्षा ली, सन्यास लिया, करीब साठ पैंसठ साल की अवस्था होगी. वैराग्य आया. हमारा जीवन तो वैराग्य पूर्ण है. बच्चो में भावना आ जाये परन्तु बूढो nairs - 501 For Private And Personal Use Only