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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी “अरे मफतलाल. झोली कहां गई?" "बाबाजी आराम से सो जाइये. भय को कुंए में डाल दिया है, निर्भय होकर सोइये. अब आपको जगाने वाली कोई चीज नहीं हैं. मैंने बीमारी का ईलाज कर दिया. बीमारी गई." साधु को सच्चा साधु बना करके ही वहां से भेजा. मफतलाल ऐसे बुरे व्यक्ति नहीं हैं. मौका आने पर अपनी उदारता भी बतलाते हैं. जब तक भय है, वहां तक सारी बीमारी है. अशान्ति वहीं से जन्म लेती है, भय के कारण भय को हम आमन्त्रण देते हैं, रोज लक्ष्मी के आगमन की प्रार्थना होती है. कोई यह प्रार्थना नही करता है जो है वो भी समर्पित हो जाये आए तो ठीक. इसका आगमन भी अशन्ति का कारण है. रहे वहां तक शान्ति. सेठ चौकीदार बन जाता हैं. जाये तो बहुत बडी अशान्ति. आये तो भी अशान्ति. खाते में जमा किए रहें वहां तक अशान्ति. आपकी नींद जाती है. सारी शान्ति नष्ट हो जाए तो जिन्दा आदमी भी मरा नजर आता है. ऐसे प्रयोजन को लेकर क्या करेंगे? आ गया, परोपकार में दीजिए. जहर भी अमृत बन जाएगा. अशांति शांति में परिवर्तित हो जायेगी. लक्ष्मी का दास नहीं लक्ष्मी के पति बनिये, लक्ष्मी का कैसे उपयोग करना उसके लिए समुचित व्यवहार होना चाहिये. आदेश लेना चाहिए, जहां सुन्दर कार्यो में इसका उपयोग किया जायेगा. ऋषि मुनियों ने कहा "दानाय लक्ष्मीः" जहां दिया जाता है, वहीं लक्ष्मी का आगमन होता है. वहीं उसका आर्कषण है. बिना दिये हमें नफा चाहिए. यह कैसे हो? “धन्ना शाली भद्रनो सिद्धि होजो, जो हर दीवाली पर लिखते हैं परन्तु ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं जिसने लिखा हो “धन्ना शाली भद्रनो सिद्धि अने त्याग होजो." जो त्याग तो समृद्धि मिले, त्याग करना नहीं और समृद्धि चाहिए. दिल्ली छोड़ना नहीं और बम्बई पहुंचना है. तप करना नहीं और वरदान चाहिए. साधना करनी नहीं और सिद्धि चाहिए. व्यापार करना नहीं और नफा चाहिए. दौलत कैसे हो इसीलिए सूत्रकारों ने कहा-अपनी इन्द्रियों का दमन करने के लिए विचार चाहिए. कई बार मन का ममत्व ऐसा होता है, मनकी वासना ऐसी होती है, काम पर विजय प्राप्त करले, क्रोध पर विजय प्राप्त कर ले, परन्तु मान पर विजय प्राप्त करना बड़ा मुश्किल होता है. काम, क्रोध, मद, लोभ, हर्ष इन शत्रुओं का परिचय दिया, आत्मा के प्रबल शत्रु लाखों करोड़ों की सम्पत्ति का त्याग करके व्यक्ति ने संन्यास ग्रहण कर लिया. साधु बन गए जब गांव में गये किसी व्यक्ति ने उनका पूर्व परिचय पूछा महाराज, आपका आगमन कहां से हुआ? ना 499 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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